QUOTES ON #सहज

#सहज quotes

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21 JUL 2018 AT 22:06

कुछ लिख पाना
इतना सहज नहीं होता
वरना हर लेखक
लिखने से पहले
असहज नहीं होता

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हमारी यादों को सहज कर रखना तुम
बुढ़ापे में यादों का खजाना रखना तुम ।

सब होंगे जब व्यस्त इस जहाँ की दुनियादारी में
हमारें लिए अपना वक़्त निकालकर रखना तुम ।

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22 MAY 2020 AT 19:00

सहज नहीं होता, पुरुष का पुरुष होना।
न चाहते हुए मुस्कुराना, चाह कर भी न रोना।

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27 SEP 2019 AT 19:41

वो प्रेम नहीं करता, प्रेम की बातें महज़ करता है।
न जाने क्यों प्रेम उसे, सहज ही असहज करता है।

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9 NOV 2019 AT 0:06

मेरे घर आँगन
वो बसती मेरे मन में
तीखी लगती स्वाद में
हर लेती हर व्याधि से

देखू कैसे न मैं उसको
जो महकाती हर पल मुझकों
गुणी सुंदरी ख़ुद में है जो
बह जाती स्वर में है जो

जिनकी आभा
जिनकी प्रभा
नीति गए संसार
गुण है जो गुणवान
है ये पूज्यनीय महान

छत्तीस ऱोग निवारे जो
मस्तिष्क तक बनाये धनवान
है वो माता सी पूज्यनीय
हम करते शीश झुका सम्मान

वेद पुराण लिख गए महान
घर आँगन करना सब ध्यान
सेवन करना सेवा भाव से
मुक्ति शक्ति मिले जैसे वरदान

Ruchi prajapati....

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6 MAY 2021 AT 13:27

सुनो
तुम्हारे प्रेम ने मेरे भीतर
एक बालक को जन्म दिया हैं,
जो रूठ तो जाता हैं पर नाराजगी
समझता ही नहीं हैं |
जिसे फ़र्क नहीं पड़ता....
कि सामने वाले के मन मे उसके
लिए क्या भाव हैं....
वो सिर्फ भोले से मन से स्वीकार
कर लेता हैं सामने वाले की मुस्कुराहट को,
जो कई बार छल लिए भी होती हैं|
पर क्या फ़र्क एक बालक को इस छल
से भी?
Hmm
उसे तो मना लिया जाता हैं कई बार
झूठी टॉफी देकर भी....
हाँ सच हैं....
तुम्हारे प्रेम ने मेरे भीतर एक बालक
को जन्म दिया हैं |

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24 MAR 2019 AT 15:27

# सहज #

सहज होता ये रिश्ता अपना

गर पैसा न होता तेरा सपना

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13 JUN 2021 AT 11:51

*सकारात्मकता*
सकारात्मता ठीक रौशनी की तरह होती है।
जब सूरज की रौशनी पंखुड़ी पर पड़ती है,
गर्माहट पाकर खिलकर फूल बन जाती है।

पौधौं में हेलियोट्रापिक इफेक्ट पाया जाता है।
वे धूप की दिशा में मुड़ने की कोशिश करते हैं।
क्योंकि पौधों को धूप की जरूरत होती है।

इसीतरह का इफेक्ट इंसानों में पाया जाता है।
व्यक्ति सकारात्मक रहने की कोशिश करता है।
दरअसल यह ब्राडन इफेक्ट के कारण होता है।
सकारात्मकता विकास के लिए जरूरी होती है।

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मैं अक्सर अपने लेखन में तुम्हे ढूंढता हूँ।
ताकि सम्पूर्ण हो जाये,मेरी कविता
और जिस तरह से मैं बढ़ रहा हूँ
नीरस निराश जीवन की ओर
उस पर विराम लग सके,
मैं फिर से पढ़ सकूँ श्रृंगार रस को
प्रेम में डूबी कविताओं का कर सकूं आलिंगन
औऱ महसूस कर सकूं, उस सहज प्रेम को
जो प्रेम को अनन्त तक ले जाता हैं।






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