प्रेयसी की चाहत घूँघट उठे प्रेमी का मिलन हो जाए।
सतरंगी ख़्वाहिशें हैं तू जहाँ है तेरा दीदार हो जाए ।।
कुछ और नहीं चाहिए जहाँ छिपा है तू प्रकट हो जाए।
सब चाहकर देख लिया आखिरी ख़्वाहिश व्यर्थ न हो जाए।।
भीतर एक ही प्यास उठती है कि कहाँ खोजने जाए।
हर बार की तरह इस बार कोल्हू का बैल न बन जाए।।
-
Experience⚛Teaching,Nature conservation a... read more
मुस्कान अस्तित्वपरक है,भीतर मौजूद रहती है।
चेहरे पर हो जरूरी नहीं, वो हंसी नहीं होती है।।
मुस्कान एक गुलाब की छोटी कली की तरह होती है।
जब खुलती है तो सुगंध पूरे शरीर में फैल जाती है।।
-
जहाँ से जितना पाने की चाह की,उतना खोता चला गया।
हजारों वर्षों से आदमी अद्भुत चक्कर में फंसता चला गया।।
कुछ कर नहीं पाया,सोचते-विचारते रहते में अटक गया।
पतझड़ के मौसम में देखा कोई वृक्ष सूख गया, मर गया।।
थोड़े दिन में देखा, नये पत्ते आ गये, नया रंग छा गया।
यात्री ठहरकर छाया लेने लगे, वृक्ष फिर नया हो गया।।
वृक्ष को कोई राज मालूम है, लेकिन आदमी भूल गया।
इस वृक्ष को नया जीवन मिल गया,वो फिर से नया हो गया।।
मरने का राज कि उसने छोड़ दिया जो पतझड़ में मर गया।
तुमको पाकर अतीत न रहा, नये जीवन में प्रवेश हो गया।।-
मेरी ख़ामोश निगाहें बस आपका रूप देख पाती हैं।
आप भीतर गहरे में छिपे हैं,आँखें देख नहीं पाती हैं।।
जैसे किसी मकान को बाहर से देखकर लौट आती हैं।
आकार देखकर मान लेना जानने की भूल हो जाती है।।
पर मोहब्बत के पलों में दिल की धड़कन जान जाती है।
प्रेम पहुँच जाता है, जहाँ इंद्रियां नहीं पहुँच पाती हैं।।-
अभी मैं मुरझा गया हूँ, कुछ बदल गया है।
देखा,खिला हुआ तारा भी अस्त हो गया है।।
तलाश किया,कौन है जो ऐसा कर गया है।
पता नहीं चला , शायद कहीं छुप गया है।।
अनंत अभिव्यक्तियों में से एक बता गया है।
खिलकर मुरझाने का अहसास करा गया है।।-
क्या वाकया है कि मेरी एक भूल से माँ की बगिया उजड़ गई।
एक छोटी बगिया मेरी माँ ने बसाई, वह बीमार पड़ गई।।
वो चिंतित थी,फूल कुम्हला न जाए,देखभाल की मुझसे कह गई।
मैंने फूलों को सींचा, जड़ों को नहीं जो जमीन में छिपी हुई।।
एक-एक फूल को प्रेम किया,पर पंद्रह दिन में बगिया सूख गई।
माँ ठीक हुई, उसने सूखे फूल देखे, बगिया तो नष्ट हो गई।।
माँ से कहा, फूलों को पोंछा, पानी दिया, बगिया क्यों सूख गई।
माँ ने कहा,जड़ों की फ़िक्र हो जाये तो फूलों की फ़िक्र हो गई।।
-
पक्षियों पर पिंजड़े दूसरों ने बना लिए हैं ।
हम अपना पिंजड़ा खुद ही बनाए हुए हैं।।
जन्म जन्मों से पंछी पिंजरे में बंद रहे हैं तो,
अब विराट आकाश से भयभीत हो गए हैं।
द्वार खोल भी दें तो जरूरी नहीं उड़ जाएं,
पिंजरे में सुरक्षित महसूस करने लग गए हैं।।
अब सत्य धारणायों,मान्यतायों में बंध गया है,
वो उन्हें मिला जो निर्धारणा में उतर गए हैं।
वो मुक्त नहीं है, उसने पंख मानो खो दिए हैं,
लगता है उसके प्राण पखेरु उड़ गए हैं।।-
जिन्हें हँसना नहीं आता,
वो रोते-रोते से लगते हैं।
जिसे हँसना आता है,
उसके आँसू भी हँसते हैं।
मगर उसकी हँसी में
अजीब मस्ती है,फूल झरते हैं।-
पहाड़ पर गिरा तो नीचे की तरफ बह गया।
ऊंचाई में रस नहीं, तो नीचे भाग गया।।
खाई -खड्डा खोजते नदी झरना बन गया।
सूर्य के तप से तपा तो वो भाप बन गया।।
मन पानी है नीचे बहा तो संसार मिल गया।
तप किया,ऊपर उठा तो प्रियतम मिल गया।।
जन्म-जन्म के बाद तन भी बहकने लग गया।
बहका बहका मन मयूर बन नाचने लग गया।।-