पक्षियों पर पिंजड़े दूसरों ने बना लिए हैं । हम अपना पिंजड़ा खुद ही बनाए हुए हैं।।
जन्म जन्मों से पंछी पिंजरे में बंद रहे हैं तो, अब विराट आकाश से भयभीत हो गए हैं। द्वार खोल भी दें तो जरूरी नहीं उड़ जाएं, पिंजरे में सुरक्षित महसूस करने लग गए हैं।।
अब सत्य धारणायों,मान्यतायों में बंध गया है, वो उन्हें मिला जो निर्धारणा में उतर गए हैं। वो मुक्त नहीं है, उसने पंख मानो खो दिए हैं, लगता है उसके प्राण पखेरु उड़ गए हैं।।