अनपढ़ चाचा सरपंच की राजनीति
बदलते समय की मांग के अनुसार
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#एक_रिजर्व_कार्मिक_की_व्यथा
सरपंचों का चुनाव कुछ इस तरह कराया ,
गए ड्यूटी के लिए तो रिजर्व में लगाया ,
आज का दिन पूरा इंतजार में बिताया ,
चुनाव के लिए नहीं आया बुलावा ,
अब जब समय समाप्त हो चुका मतदान का ,
हमें क्यों अब यहां बेकार में बिठाया ,
अनुमति मिल जाए अब तो घर जाने की
दिल यही सोचकर मंद मंद मुसकाया ।-
ऐसी सरपंची part-1
ऐसी सरपंची में लोग खडे हो जाते है,फिर भीख मांगने वोतो की घर² जाते है।
100-200वादे साथ लिए वह आते है,फिर बईमानी से वोट खरीद वह लेते है।
ऐसी सरपंची में लोग खडे हो जाते है,फिर भीख मांगने वोटो की घर² जाते है।
जब सरपंची की सीट उन्हें मिल जाती है,घर बैठे सेठ वह बन जाते है।
लोगो से किए वादे भूल जाते है,घर बैठे जेब भरने के काम आते है।
ऐसी सरपंची में लोग खडे हो जाते है,फिर भीख मांगने वोटो की घर² जाते है।
किसी गरीब का शोषण करते,सड़को की जमी खा जाते है।
जहाँ निकलना चाहा रस्ता,उसे गरीब के घर लें जाते है।
ऐसी सरपंची में लोग खडे हो जाते है,फिर भीख मांगने वोटो की घर² जाते है।
रिश्वत लेकर घर बड़े² बनाते है,प्रशासन भी साथ उन्ही का देता है।
जैसे पुलिस पटवारी आदि,खडे देखते रहते है।
ऐसी सरपंची में लोग खडे हो जाते है,फिर भीख मांगने वोटो की घर² जाते है।-
ऐसी सरपंची part-2
किसी वजह से गरीब कही,
जा नहीं वह पाता है।
क्योंकि सब रिश्वत के ,
भूखे मारे बैठे है।
ऐसी सरपंची में लोग खडे हो जाते है,
फिर भीख मांगने वोटो की घर² जाते है।
इन लोगो के कारण ही हथियार वह उठाते है,
इन लोगो के कारण ही कोई गब्बर बन कर आते है।
इन लोगो के कारण ही ग़रीबी बढ़ती है,
इन लोगो के कारण फिर कोई भूखा मरता है।
ऐसी सरपंची में लोग खडे हो जाते है,
फिर भीख मांगने वोटो की घर² जाते है।
ऐसे ही सरपंच रहे और ऐसे ही नेता रहे,
फिर मतलब ना संविधान का ना कर्तव्य पालन का।
ऐसा ही चलता रहा टो वतन हुआ बर्बाद हमारा,
फिर मतलब ना संविधान का ना कर्तव्य पालन का।
ऐसी सरपंची में लोग खडे हो जाते है,
फिर भीख मांगने वोटो की घर²जाते है।-
#सरपंच_चुनाव:-
फेक कामली हुया सरपंचा ताणी तयार।।
सामला कह रहा डाल दे हथियार।।
पहले नम्बर थाको छो अब नम्बर माखो है माखो।
नेता सिला लिया धोती कुर्ता नया।
अब जार बेठबा लाग्य चाय की थडी पर।।
थडीरा भी भाव बड्या।
सब सरपंचा का चुनाव पर अड्या।।
थडी लोगा बेठ्या ज्याका भी मुच्छा का ताव बड्या।
चाय की साग-साग चुनाव का जोड़ तोड़ म लाग्या।।
घर घर जाकर राय लेरा भाई फार्म भरदू थे कहो तो।
भाई पहले तेरा भाया न पुछ।
माख तो नेता मेही बन रह्या छ।
गांव म चोखो काम कर्यिसा।।
अबक सरपंच का चुनाव लड़ा ला।।
युवा नेता भी खूब दौड़ रहा।
पछला सरपंच ने खोश अब उढरया रहा।
अब हालात तो इया का हो रह्या ढाणी म
सरपंच बनरया और घर-घर तो वार्डपंच बनरया।
जो सारा वार्डपंच उपसरपंच बण रह्या।
आदा तो दाणा पुडी क चक्करा म पढर्या
खड़ा सरपंचा की दावेदार खुब भी बढर्या ।।
शाम कोई की जय बोलरया सुबह ओर की जय बोलरिया।
लुगाईया भी पाच कनया पति सरपंच बनवा ताणी लागी। कहबा लागी म्हरा पावणा न वोट दिज्यो।।
सरपंचा की बुख सब घर म जागी...
😀😀😁😃😃😃-
#सरपंच_चुनाव
ल्यो भाइयो सारो ही राग बिगड़गो।
चोला पजामा को रंग फीको पड़गो।।
लाटरी भी लुगाईया की निकली छः।
थडी रो राग बिगड़गो.......।
आदमी भी लुगाईया फार्म त अकडगो।
घर आ बोल्या चिमटा बोगली छोड़ गबडी।
घर-घर को हाखो माच्यो लाटरी लुगाईया की राची।।
आपा चाला वोटा का फार्म का जुगाड म।
यो काका फार्म छो म तो गुठा ठेक छू।।
घरहाला को माथो चकरायो।।
पढ्या लिख्या छोरा छोरी बुलायो।
साढी चार घंटा म लाला सू लाली लिखबो सिखी।।
जब लाली चाली फॉर्म भरने....
साग-साग जेढ-देवर को अलग मेलो ।।
देवरिया-जेठानी के साग ढाणी की लुगाईया को मेलो।
देख मिजाज लाली को लाला सोच्यो...
सरपंचाणी पति सरपंच ही होस्यो।।-
जा भई दशा चुनाव के मारे रजऊ तुम्हारे द्वारें
जौंन घड़ी से परी है वोटें खिच गयी है तरवारें
फरसू कक्का चुनाव के पाछै खुरकी पीटें डारें
जा भई दशा चुनाव के मारे रजऊ तुम्हारे द्वारें
हमाई जान अधबीचा अटकी रजऊ रजे बहारें
हम तो बैठे चैन मड़ैया,बीड़ी को बिंडल बारें
टिकी हती भितिया से हो गई ओट किबारें
वोट सबइ जन करियो ऊबत से अन्ध्यारें
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गली गली सेहरा सजे, सरपंची की आस।
फार्म भरो परचार करो, कच्छू न आओ हाथ।
कछू न आओ हाथ, फिरत पनही जे टूटी
वोट हाथ न लगी गांठ की बोतल फूटी
कहें pk✍🏻 maharaj समय की कीने जानी
सरपंची पे "शिवराज" फेर दयो जूड़ो पानी
आरक्षण के फेर में, चलो न कछू उपाव
पूर्व सरपंच सब बोल परे,
"जय हो आयोग चुनाव"-
अगर हारते रहे जेहादियों से आपसी मतभेदों के कारण ,
तो फिर गुलामी से खुद को भी तुम बचा पाओगे क्या।
एक दो कोढ़ी की कुर्सी के खातिर अगर लड़ते रहे तो ,
तुम प्रताप को अपना पूर्वज गर्व से कह पाओगे क्या।
अगर तुम भी हो गए घर में बैठे जयचंदो की तरह तो,
आगे आने वाली पीढ़ी को आजाद देख पाओगे क्या।
हर बार धकेलते रहे गुलामी की जंजीरो में सभी को,
तो खुद पर लगे जयचंद के दाग को धो पाओगे क्या।।
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