अपनी अपनी इज्ज़त बचाने मेें लगे है सब
अपनी बहन को छोड़कर ताकते मेें लगे है सब-
वो कब से कह रहा था..।।
में वही था रूका..।।
में उसके सामने था झुका..।।
फिर वो जा चुका था..।।-
हमें तो भरोसा था तुम्हारी आंखो पर..।।
वो भी आज भर आई आंखे मिलने पर..।।-
एक रण नाम में...
एक रण जीवन में...
एक किरण के कितने रण..
बताए कैसे ये सब किरण..
किनारे मिले फुर्सत मिले...
तो सहारा बना ले किरण..
एक शाम मेें कई शाम ढल गई..
एक सुबह कि नई किरण लाने मेें..
सुबह-शाम के बिच का ठहराव है..
किरण होना भी रण का काम है..
ओठ के बादल में छुप नही सकती..
अपने नाम फिछे से हट नही सकती..
मातृत्व की भूमिका लिए है मेरी माँ..-
अब उसकी ख्वाहिशों में दबकीस रहती है..।।
घर को छोड़कर वो ससुराल मेें रहती है..।।-
जो सुबह शाम है वो ही तो तेरे नाम है।।
बाकी दोपहर की छाँव सी तेरी बाते है।।-
मोहब्बत की कसम भी कितनी कसम लेती ।।
एक ही दिल पर जख्म पर कई वार लेती है..।।
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टूटे अरमानो मेें एहसास भी बोझ लगता है..।।
दिवार पर उसका चेहरा है भी खामोश लगता है..।।-