चाहे कोई कुछ कहे, कितना ही मचाए शोर,
ना टूटी है ना ही टूटेगी, मेरे विश्वास की डोर,
कर जाऊंगा पार हर ऊबड़ खाबड़ रास्ते को
अभी है काली रात पर आएगी उजली भोर।-
प्रकृति ने खुशियां ही बनाई, ग़म बनाए इंसान ने,
कुछ को मारा दर्दे दिल ने, कुछ को अभिमान ने,
जलन, ईर्ष्या, काम, क्रोध और लालच बुरी बला
सबको इंसान ने पाला, कुछ ना दिया भगवान ने।-
तिरछी नजर, पतली कमर, अधरों से मिलते अधर दिखें
चहुं और यही तो दिखता है, ये जितना दिखे उतना बिके,
कितने लुटकर चले गए इस जिस्म की चाहत में अरविंद
कितनों ने समझाया हमको, अब और आकर क्या लिखे।
जिसको देखो लगा हुआ है, बस तन की प्यास बुझाने में,
सबकुछ अपना भूल गया है, एक मिट्टी का ढेला पाने में,
माना तन की प्यास बुझा लोगे, पर मन को कैसे रोकोगे
क्या मिट्टी के बदन को खा लोगे, आज शाम के खाने में।-
मन का घोड़ा इतना दौड़ा, कि मैं थक कर हार गया,
जो सहज रहा, सबकुछ पाया और जीवन तार गया,
तुम मत भागो इनके पीछे, ये होठ हवस के प्यासे हैं
सारा दिन इनमें ही डूबे, तो बेकार जीवन सार गया।-
बहता रहता है जीवन, बहकर ही निर्मल होता है,
तू क्यों रुका, क्यों न चला, क्यों बैठे बैठे रोता है,
जीवन दरिया शुरू गर्भ से, वो ही मंजिल पाएगा
इस दरिया के पानी में, जो बीज कर्म के बोता है।-
जहां भी रहा , जिन जिन से मिला, सबसे कुछ कुछ रख लिया,
मुझमें महज मैं ही नहीं रहता, मैने सबसे कुछ कुछ चख लिया।-
दुनियां की इस भीड़ में मत हो जाना गुमनाम तुम,
याद रखे हरेक मिलने वाला, करना ऐसे काम तुम,
मधुर हो वाणी, नेक हो दिल और सबको देना प्रेम
चलते रहना हर पथ संग में, मत करना विराम तुम।-
कोई कर सके उससे ज्यादा करेंगे, चाहे इश्क़ हो या इंतजार,
तेरे ही सपने संजोता है मन , बस में नहीं मेरे दिल ए बेकरार।-
मत कर फिक्र कि अंजाम-ए-मरहला क्या होगा,
कोई रुका है क्या कभी हमेशा के लिए अरविन्द।-