Devkaran Gandas   (©️देवकरण गंडास 'देव')
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Joined 19 November 2019


Joined 19 November 2019
16 AUG AT 20:09

Thank you

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26 JUL AT 20:30

पुल ढहे, सड़क टूटे या फिर गिरे स्कूल,
हमने तुमको है चुना, है हमारी ही भूल,
क्या बनेगा, क्या ढहेगा, सब तुम्हारे हाथ है,
नेताजी तुम मौज करो, सब तुम्हारे साथ है।

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21 JUL AT 20:53

गैरों से क्या नाराज़गी अरविंद,
धोखे तो अपनों से मिलते हैं,
जब पेड़ को मूल ही खाने लगे
फिर फूल कहां पर खिलते हैं।

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19 JUL AT 17:33

अब जलने लगे हैं लोग सब मेरी पहचान के,
जब से कदम पड़े है, जीवन में मेरी जान के।

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17 JUL AT 16:47

बदलते मौसम की तरह, बदलने वाले बहुत हैं यहां,
अगर तुम पतझड़ में भी साथ चल सको, तो चलो।

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17 JUL AT 16:43

जहां रखकर सिर हो सकूं चिंतामुक्त, ऐसा कंधा चाहिए,
ज्यादा कुछ नहीं चाहिए बस एक नेकदिल बंदा चाहिए।

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16 JUL AT 21:54

तेरी आंखों की शरारत ये कमाल कर गई,
बस एक पल निहारा और बेहाल कर गई।

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15 JUL AT 16:51

तेरी पायल की झंकार के संग, दिल में सरगम सी बजती है,
गिरती है बिजली दीवानों पर, जब सीसे के आगे सजती है।

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14 JUL AT 18:54

हमें तलब है तो बस, दीदार ए यार की,
उनकी आंखों में बसे बेशुमार प्यार की,
माना कि जिद्दी है वह, पर सुनेंगे जरूर
उनके पास ही दवा है हमारे बुखार की।

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14 JUL AT 17:21

यहां सब ही वफ़ा के मारे हैं, ज्यों टूटे आसमां के तारे हैं,
कोई एक होता तो हाल भी पूछूं, देखो तो कितने सारे हैं,
आतुर हैं खुद को मिटाने को, प्यार का जहान बनाने को
पर कैसे बनेगा ऐसा जहान, खुद को ही कहां ये प्यारे हैं।

ये प्रेम की धुन में मतवारे हैं, सब इश्क़ की बाज़ी हारे हैं,
मर मर कर जीते हैं खुद ही, और इश्क़ की राह संवारे हैं,
कुछ हुए सफल, फिर भी हैं विफल, मन इनका चंचल है
ये आशिक़ हैं नव यौवन के , पतझड़ के फल तो खारे हैं।

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