भरत सिंह जोधाणा सूर्यवंशी   (अज्ञात सिंह)
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Joined 23 December 2020


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Joined 23 December 2020

खूबियों की पहचान हो, धरा मेरी बहन हो,
लिखती खूब अनोखा हो, भाइयों का प्रोत्साहन हो।
शब्द ज्यों सजाती हो, त्यों प्रकृति सजती हो,
हाथ रखना हम पर तुम, बनाए रखना आशीष को।।

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हे कुछ तो दया उसके अंदर,
हे मन तो कोमल उसका पर।
हे नहीं कठोर वो पत्थर सी,
हे जीवन साथी मेरा दर्पण...

हु दया हीन में पत्थर सा,
हे कठोर दिल मेरा पर था ।
नहीं समझा भाव मगर मे ,
में एक तरफा प्रेम का दर्पण था....

कैसे कहु बस अब क्या कहु,
किस मुँह अब उससे बात करू,
जो भी किया सब गलत किया,
मैंने उसका मन नहीं पढ़ा....

जो मिला प्यार बस परखा था,
उसने मुझको बस आजमाया था,
नहीं निकला जुबा का पक्का मे,
बस उसके लिए मे गलत ही था....

हर हाल मैंने चाहा था,
सब कुछ मे अच्छा कर दूंगा,
हर बार गलत ही निकला मे,
मे उसके काबिल नहीं निकला........

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मेरा हाल बस मेरा ओटा जानता हे,
वो प्राचीर जानती हे वो पहचानती हे।
वो हर इस्तर वो हर रज जानती हे,
मेरे दिल का दर्द मेरा कक्ष जानता हे।।

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एकबार ठान लो

कई उलझें मनो का में द्वन्द्ध लिखता हूँ,
नहीं तुम किरीटी मे कर्ण लिखता हूँ।
नहीं कोई तुमको श्रेष्ठ यहाँ बनाएँगा,
सब कुछ जीतकर तु भी नरेश बन जाएगा।।

शंध सी बधाओं को अंग से हटा देना,
चाहे रोके तुम्हें भीष्म भी फिर भी डटे रहना।
चाहे तुम्हे पीछे कोई कितना भी खींच ले,
भार्गव के तीरो सा तुम वेग अपना रखना।।

दशरथ मांझी जैसे बनो कुछ भी ना हो,
पहाड़ चाहे कितना भी उच्च क्यों ना हो।
ठान लो मन मे तुम एक बार रार लो,
होंगे कामयाब तुम बस एकबार ठान लो।।

»दशरथ मांझी कहते हे -
"गहराई से सोचो और फिर काम करो,
कोई भी काम असम्भव नहीं।"

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अंजन ना लगाया करो,
मधुशाला जैसी आँखों मे।
हम तो मर मिट जाएंगे,
तेरी मधुर-मधुर मुस्कानो मे।।

जब लगा सूरमा नयनों में,
फिर कैसी कयामत डाहती हो।
हर कोई घायल होयेंगा,
जब लगा हो कोहल आँखों को।।

कटि मृदु तेरी हे जैसे,
मटकाती बलकाती जैसे।
मे देख -देख ऐसे जलूँगा,
जैसे शोला भड़का अंगारो से।।

हर पुष्प कली पर खिलता,
उस बाग का माली होता हे।
हर कोई मेरे जैसा नहीं,
जिसका सौभाग्य माली जैसा होता हे।।

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रणभूमि मे

नहीं मे किरीटी अब, जिसके सब साथ हे,
वासुसेन सा हु मे, बस स्वयं को प्राप्त कर।

में बीते कल को छोड़कर, आज का भय करू,
बार-बार ध्यान कर, फिर क्यू अवसाद करू।

स्वयं का काज करू, बधाओं के शूल पर,
बनकर प्रवीण मे, लक्ष्य भेदू साधकर।

बधाओं के शूल को, शंध सा हटा दूंगा,
बनके स्वीकृत मे, गतिवान पथ मे।

पात्रता न पूर्ण हो, बनुँगा राधेय मे,
विश्राम ना होंगा अब, जबतक रण ना जीत लूँ।

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तुम्हारा जन्म एक नई उमंग लाया हे,
नवीन आशा और स्वप्न साथ लाया हे।
तुम्हारी जिंदगी मे खुशियों का संचार हो,
तुम्हारी जीवन मे सफलता के द्वार खुले हो।।

जन्मदिवस की बहुत बहुत बधाईया बेटा पलक
💞❤🎂🎂

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में शराफत में जीता हु, मगर मुझे उल्फत पसंद नहीं,
में शरीफ बंधा हु मेरे यार,मुझे ये अवारगी पसंद नहीं।

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दो रोटी के लिए मरता था जो रोज,
उसकी मौत पर हुआ देशी घी का भोज...!!
भोज भी बस दिखावे का था,
मौत तो बस एक बहाना था।

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फिर से कर ली,इन किताबों से यारी,
ये दुनिया दिल लगाने के काबिल नहीं हे।

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