चुनावी वक्त पर किए, झूठे वादों को तोड़कर, अब चल दिए हम
बस पैसा मिला, ये जेब भरा, और गाँव छोड़कर निकल लिए हम
ये कहानी है उन सरपंचों की, जो देश के विकास में बाधा हैं
गाँव को हम शहर बनाएंगे कह, ये सबसे करते झूठा वादा हैं
जिन्होंने वोटों में अपना विश्वास दिया उन्हीं को ही छल दिए हम
बस पैसा मिला, जेब भरा और गाँव छोड़कर निकल लिए हम
गाँव की सड़कें जिस पैसे से बननी थीं, उससे अपने घर बनाए
आखिर क्यों भूल जाते हैं लोग की क्यूं हम इन्हें सरपंच बनाए
शहर में जमीन खरीद, देश का सर्वनाश कर अब चल लिए हम
बस पैसा मिला, जेब भरा और गाँव छोड़कर निकल लिए हम
कहीं सड़कों में गड्ढे बने हैं तो कहीं जलभराव से लोग जूझ रहे
मगर इन नेता, सरपंचों को तो अपने बैंक बैलेंस ही सूझ रहे
देखो ज़रा देश के गद्दार, भ्रष्टाचारी अब शहर को चल दिए हम
बस पैसा मिला, जेब भरा और गाँव छोड़कर निकल लिए हम-
~* ज़िद्दी दिमाग ज़िद्दी दिल *~
सरपंच खोज रहा हूँ मैं,
पंचायत बुलवानी है..
दिल और दिमाग में,
जरा सुलह करवानी है..
दिल,दिमाग से पैदल है,
और दिमाग, दिल से ज़िद्दी है..
दिल बोले मैं हूँ सच्चा,
दिमाग की अपनी कहानी है..
दिल को थोड़ा दिमाग,और
दिमाग को दिल दिलवानी है
थक सा गया हूँ मैं,
आज सुलह करवानी है..-
पंचायत-ए-जमाने भर की वो करना चाहते है
जो खुद के घर को भी संभाल न पाए कभी..🤔
पहले चरण में 1002 ग्राम पंचायतों के लिए 9171 उम्मीदवार🙄, सभी भावी सरपंचों को शुभकामनाएं🙏-
"अमीर का दस रुपिया सौ में चलता है, और गरीब का तो सोना भी खोटा..." भयंकर सर्दी में खेत के बीचों बीच दो झौंपड़ियों के मध्य कच्चे आंगन में जली अलाव से चिलम के लिए अंगार उठाते हुए वो बोला, सरल, सीधी स्वभाव की अनपढ़ पत्नी इन पहेलियों के अर्थ बुझाने में असक्षम सी बोली, "साफ साफ बताओगे, क्या हुआ स्कूल में, हमारे बच्चे को परीक्षा तो देने देंगे ना, आखिरी सहारा कुछ गहने ही बचे थे, वो भी फीस के जुगाड़ में गिरवी हो गए...." कहते कहते आंख भर आई, घर का मुखिया जैसे पत्थर हो चला था, शांत चित्त से चिलम को सुलगाते हुए जवाब दिया, " इस देश मे गरीब की कोई सुनवाई नही, आधी ही फीस का जुगाड़ हुआ और कौनसा साल खत्म हो गया, पर मैडम ने साफ मना कर दिया, पूरी फीस लाओ वरना परीक्षा भूल जाओ, हमारे वहाँ बैठे बैठे ही सरपंच जी भी आ गए, लिस्ट में उनके बेटे का भी नाम था, दस साल की फीस जितना सोना बदन पर,आते ही बोले, "मैडम आप तो जानते ही हो आचार सहिंता लगी हुई है, पंचायत का सारा पैसा रुक गया, कुछ दिनों में पैसे आ जाएंगे तो भेज देंगे फीस" ! प्रिंसिपल साहिबा की तो घिग्गी बंध गई, कहने लगी, "आपने आने की तकलीफ़ क्यों उठाई, फोन कर देते, बहुत था, मैं दिखवाती हूँ, किसने नाम डाल दिया लिस्ट में आपके बेटे का..." जरा सा अल्पविराम, चिलम को लंबा खींचते हुए आगे बोला, "हम आधी फीस दे तो भी परीक्षा नही, उनका एक फोन भी साल भर की फीस समान"...
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ख़्वाहिशों की जब पंचायत बैठती है, तब उम्मीदें सर झुकाकर कोने में खड़ी मिलती है और, सरपंच बना रूपया, ठहाके लगाता रहता है
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सरपंच
जिनमे थी इतनी अकड़
उनको भी झुक कर करवाया सलाम🙏
पैर पकड़ कर करते प्रणाम🤣
वा वा सरपंचाई क्या गजब है तेरी लड़ाई
एक कुर्सी के लिए कितने मिन्नतें करवाई
वा वा सरपंचाई।।।
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एक गाँव के प्राइमरी स्कूल में एक वाक्य लिखा था.
"विद्या धनम् सर्व धनम् प्रधानम्"
बड़े ही भावुक होकर प्रधान जी ने गाँव के लोगों को इसका अर्थ इस प्रकार बताया -
"विद्या के लिए आया हुआ सारा धन प्रधान का ही होता है!"-
सगला नेता करे हाहाकार ,मांगे है वोट अपरम्पार,
हाथ जोड़ आवे घर रे बार,कोई हाथ कोई गाडी तो कोई है साइकल पर सवार,
मन और जुबां पर एक ही बात अबकी बार गांव री सरकार अर गावं रो विकाश ,
सरपंच चुनाव चिन्ह रे बिन ही इयां कहंता होगा तेयार ,
आपने और आपने मायतां रो तो सदां स्यू ही हो आपसी प्यार
अबकी बार तो रोलो आछो ही हुग्यो ,सरपंच बदलन आरो फैसलों तो पाछो हुग्यो,
मन कइयां का तो ईमान बिकता दिखे ,क्युक "सैनी" माहौल सारू बातां लिखे,
अब हर एक मतदाता न आप री समझ रो सिक्को ईवीएम म चलानो है ,
साहवा की भलाई चाहो तो बिना लालच में आगे बडिया सरपंच लयानो है
मिट्टी की कसौटी पर खड्यो गाव री नब्ज बांच सके ,
इसी सोच रो एक जिको सत्य असत्य को भेद भांप सके,
मॉल तोल के सोच समझ के अमूल्य वोट रो उपयोग कर लिज्यो,
Raj... सैनी ओजुं केव आपरो कीमती वोट भाया योग्य उम्मीदवार न ही दीज्यो..-
चुनावी दौर
( पंचायत चुनाव)
प्रत्याशी के हाथ जुड़े होंगे,
जनता अकड़ी अकड़ी चलेगी!
गलियों में शौर-शराबा होगा,
कुछ इस तरह का चुनावी दौर होगा।।
सुझावों का सवेरा होगा,
वादों का शोर होगा!
बाजारू चर्चा गर्म होगी ,
कुछ इस तरह का चुनावी दौर होगा।।
मतदाता सूची का गहन निरीक्षण होगा,
रात्रिकालीन समागम होगा,
चाय, गजक औऱ मूँगफली भी होगी!
कुछ इस तरह का चुनावी दौर होगा।।-
सिंझ्या देखो सावळी हुई गणेरी आज,
पंचा भेळी बेठगि ज़ुल्म करदिया काज।
खावे हिड़की गिडकड़ी दूजा न मत दीज्यो दोष,
तीन दिन,तीन मिना,तीन बरष बावाळो या पछै होश।-