कुछ लोग सुनते हैं।
कुछ लोग सुनाते हैं।
कुछ लोग सुनाई देते हैं।-
स्त्री
तुम न पूरी तरह से लिखी जा सकती हो
न पढ़ी जा सकती हो
न ही समझी जा सकती हो।
ये अधूरापन ही
बनाता है तुम्हें
स्त्री पूर्णतः।-
आजकल वो हमारी बातों का मतलब ना समझते हैं ना समझने की कोशिश करते हैं।
लगता हैं जैसे हमसे जुड़ा हुआ उनका
मतलब अब पूरा हो गया हैं।-
वो तो बरसात सी आयी थी
हर बूंद में जिंदगी संग लायी थी
पर उसका जाना तो तय था,
कमबख्त गलती तो हमारी है
उसके आने से रोशनी क्या मिली
हम उसे सूरज की किरणे समझ बैठे।-
ख़ामोशी का तजुर्मा बेसबब सबब बन के रह जाता है
समझना किसी ओर को था, समझ कोई ऒर जाता है।-
यह दिल बहका सा कितना कुछ कहता है
और वह समझदार सा
नासमझ दिमाग , इसे बड़े गौर से सुना करता है,
वैसे तो बड़ी कशमकश है दोनों में,
पर जब बहारी दुनिया इन्हें नही समझा करती, तब यह अकसर एक दूसरे को समझने की कोशिश किया करते है
सचमे यह दिल और दिमाग हमे बखूबी संभाला करते है
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मेरे अरमान मेरी ख्वाहिश और मेरी तम्मना,
मिलो तो कभी फुर्सत से ये सब फिर, पूछना!
एसी पहेली बन गयी है ज़िन्दगी इन दिनों,
मुश्किल है बहुत ही जिसको समझना बूझना!
नादान दिल भले चल ले चुपचाप इस गली से,
इश्क की गली है ये, आगे रास्ता नहीं सूझना!
दिल किसी से लगाने को मना करता नहीं मैं,
टूट जाए तो जब, बस इलाज मुझ से पूछना!
करता हूँ इज़हार, ख़्वाहिश मन से, मन की,
लगे दिल को ख़ुशगवार तो इक़रार करना!-
दिखते हैं राहों में जो अपने, पराया समझना नहीं।
सीने से लगा लेना उसे, तुम सिर पटकना नहीं।।
ख़्याल है मुझे, तुम्हारे हर एक ख़्याल की 'धर्मेंद्र'
अपनी जेब में हाथ डालो, उसका तकना नहीं।।
हाथों में लकीरें बहुत है, लकीरों में लटकना नहीं।
नज़ारा बहुत हसीन है, तुम आँख झपकना नहीं।।
मंजिल है दूर, पर है शर्त, यहाँ थकना कोई नहीं।
कहने को अपने है बहुत, पर अपना कोई नहीं।।-
एक दिन में ही पढ़ लोगे क्या मुझे,
मैंने खुद को लिखने में कई साल लगाए हैं |
एक दिन में नहीं समझ सकते मुझे,
क्योंकि मैंने खुद को समझने में कई साल लगाए हैं ||-