गावत बेद पुराण अष्टदस, छहो शास्त्र सब ग्रंथन को रस।
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शास्त्र के लिए मन में सम्मान हो सकता है, लेकिन शास्त्र क्या सिर पर ढोने की चीज़ है? मेरे गुरु आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी ने मुझे यह दोहरी दृष्टि दी शास्त्र के प्रति...यानी दर्शन की परम्परा का आप सम्मान भी कर रहे हैं, लेकिन उससे आक्रांत भी नहीं हैं। उसका उपयोग और काम हो गया तो उसे पानी में फेंक दीजिए। ढोने से कोई लाभ नहीं, बल्कि उलटे डूबने का खतरा है।
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अच्छा सुनो,
जो ये केशुवो से तुमनें,
अपने मुखड़े को छुपा रखा है
शास्त्रों में छल
इसे ही कहते हैं..!
वटवृक्ष की लटाओं
की तरह
जो ये है उलझ जाती है
शास्त्रों में उलझन
इसे ही कहते हैं..!
नेत्र मेरे,
खोजना चाहते हैं तुम्हें
शास्त्रों में तड़प
इसे ही कहते हैं..!
हटा भी दो ये लटे
चेहरे से
शास्त्रों में पूर्णिमा का चांद
इसे ही कहते हैं..!!!
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सोइ पावन सोइ सुभग सरीरा।
जो तनु पाइ भजइ रघुबीरा ॥
वही शरीर पवित्र और वही सुन्दर है जिससे श्रीभगवान्
रघुबीर का भजन होता है।-
दुनिया के शास्त्रों में देखो
जिस तरह से वे स्वर्ग का वर्णन करते हैं वह बहुत लालची, कामुक और भौतिकवादी दिमाग से उपजे सपनों के अलावा और कुछ नहीं है।
नर्क तुम्हारी अपनी रचना है और स्वर्ग भी-
वेद और शास्त्र पढ़ना,
बचपन से हमारा धर्म है।
ब्राह्मण है हम,
हमारा कर्म ही प्रथम है।-
इतिहास गवाह है, शब्द हमेशा ही गजब ढा गए,
जहाँ शस्त्र काम ना आये, वहाँ शास्त्र छा गए !-