हरि आते हैं...
हरने पीर, देने साथ, दिलाने विश्वास,
कि वो हैं...
आपके साथ, आपके पास
तो कमी कहाँ है ??
है हममें...
हम साक्षात्कार के इतने आदि हो गए हैं कि भूल गए..
ईश्वर निराकार हैं।
वो हैं सब जगह व्याप्त, हममें भी, तुममे भी,
अंदर भी, बाहर भी...
इतने पर भी, वो प्रयास करते हैं.. हमें हमारे तरीके से समझाने का कि वो हैं...
हमारे साथ, हमारे पास,
आए हैं... हरने पीर
उन्हें विश्वास है कि हम समझेंगे.. कभी न कभी।
बस उन के इसी विश्वास पर विश्वास करने मात्र की देर है...
आपके मार्ग प्रशस्त होते चले जाएंगे।।
जय श्री हरि-
तो क्या बात है,
आँसू संग मुस्कुराहट..
चांदनी रात है,
ज़माने के सलीकों और सिमटी सोच के,
बादलों में छिपी है जो...
कोई गैर नहीं,
तेरे दिल की तुझसे ही...
कही बात है।।-
ज़िन्दग़ी के चार पन्ने...
अक्षरों को टांक लो,
गुज़रता क्षण.. लौटता ना,
विरसता को जांच लो!-
रंगा गगन को नीला लाल,
किया गुलाबी उषा का भाल,
सुनहरी पलकें जब खोली,
हुआ प्रफुल्लित प्रातःकाल।
हरित उपवन हर कोंपल सुन्दर,
त्वरित विचरते ऊपर नभचर,
कलरव से गुंजित हर इक दर,
रहित विषाद से सभी धरा पर।
ज्यों ज्यों पलकें खुलती जाती,
त्यों त्यों लालिमा बदन छुपाती,
हर्षित प्रभाकर सुबहा लाती,
प्रति दिवस की शोभा बढाती।
देह चली है काम को,
त्यागा है विश्राम को,
हड़बड़, भगदड, यूँ ही घर-घर,
दौड़े सब निज धाम को।
शिवालय कोई, कोई विद्यालय,
दफ्तर, पनघट, दुकान को,
जोश, उमंग से सराबोर हो,
अब लौटेंगे शाम को।
पीत से बदला केसरिया नभ,
घर जाने की जल्दी में सब,
निपटाया सब काम को,
हुआ जो धूमिल आसपास अब,
बड़े, बूढ़े और बच्चों ने तब,
घेर लिया चौपाल को।
पूरित दिवस हुआ सम्पूर्ण!
शुभरात्रि है काल को,
शुभरात्रि है काल को।-
सूर्योदय
उन गिरी सतहों के पीछे, लगी मानो भीषण थी आग।
धरा गगन सब मौन हो गए, छटा धुएं सी रही थी भाग।
क्षण क्षण में थी आग बढ़ रही,ताप रहा दिन के संग जाग।
जल कण चांदी छोड़ चल पड़े, सोने सा बनने की लाग।
हवा सरसरी छुए बदन को, पत्ते पत्ते का हर भाग।
हरे तरु से भरे घने वन, हिरण , गाय, तोते और बाघ।
छोड़ धरा के हरएक रंग को, चमके सूर्योदय में लाल।
मेरे पुलकित मन में थी इक, चाह देखने की वो भाल।
प्रतिपल अग्नि की लपटों से , झांक रहा था जो हर साल।
अगले क्षण वो प्रकट हो गया, चीर आग का हृदय विशाल।
थोड़ी मेरी मुंदी आंख से , देखी मैने उदय मशाल।
रोम रोम में तेज़ भर गया, ऐसा सूर्योदय का काल।
-
which help us to reach the shore of happiness and success...
without...
regrets
dullness
depression
negativity
-
जाने कौन मिटा दे हमें...
हम मनुष्य नहीं आप की तरह,
शब्द हैं मन के भीतर के...
बस कागज़ पर उकेरें और जिया दे हमें।।-
I give my whole heart to it....
filled with my soul.
My happiness and my likes....
i feel with that all.-
जग रही है...
न सोती है ना सोने देती है।
क्यों?
क्योंकि इसे आदत हो गई है...
तेरे साथ की,
तेरी सांसो के संगीत की,
तेरे होने के अहसास की,
तेरी खुशबू की,
तेरी आस की...-