मज़हब को ऐसे रोड पे नीलाम ना करो
लेकर के नाम राम को बदनाम ना करो
बच्चा किसी का मार के रुस्तम बनो न तुम
रावण भी शर्म खाए ऐसा काम ना करो !!
مذہب کو ایسے روڈ پہ نیلام نہ کرو
لیکر کے نام رام کو بدنام نہ کرو
بچّہ کسی کا مار کے رستم بنو نہ تم
راون بھی شرم کھائے ایسا کام نہ کرو-
پُتلی اے چشم تک نا دیکھ سکا، کیا تھا درجہ اے لاثانی
آنسو اے ندامت مے میں ڈوب مرا، دیکھ حیا اے عثمانی
पुतली-ए-चश्म तक ना देख सका, क्या था दर्जा-ए-लासानी,
आँसू-ए-नदामत में मैं डूब मरा, देख हया-ए-उस्मानी।-
नज़रें नक़ाब में रखकर क्या छुपा रहे हो
पहले कहाँ थी शर्म जो अब घबरा रहे हो
पर्दे के पीछे कौन कैसा किसको पता
सरेआम तुम हमें टोपी पहना रहे हो-
लोग मोटापे की तुलना गर्भवती महिला से पता नही क्यों करते हैं? पहली शर्म की बात है और दूसरी गर्व की। बोलना आसान है पर 9 महीने की यात्रा में दर्द, एहसास, एक लड़की से माँ होने का सफ़र वो औरत ही समझ सकती है। पर हम मज़ाक में किसी मोटे व्यक्ति को तू 'प्रेग्नेंट वुमन' जैसा लग रहा है बोलने से पहले ज़रा सा भी एक बार सोचते नही। उसका कुछ नही बिगड़ेगा पर बोलने वाले को बेसिक शिक्षा की जरूरत है फिर से।
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लगा रखे हैं बेईमान चेहरे पर, हज़ारों और चेहरे,
मगर शर्म आँखों की, ईमान के आईने पर ही रौशन है !-
नज़रें नक़ाब में रखकर क्या छुपा रहे हो
पहले कहाँ थी शर्म जो अब घबरा रहे हो
पर्दे के पीछे कौन कैसा किसको पता
सर-ए-आम ज़ानी तुम टोपी पहना रहे हो-