करी है हवाओं से ये दुश्मनी जो,
श'मा तेरी लौ को मचलना पड़ेगा।-
कहाँ ? मेहताब लाने की, बातें करते थे..,
आज ! तीरगी में, डूबी हुई हूँ, और वो.......,
शमा, जलाने तक , नहीं आते है......।।-
कुछ अधूरे अरमान खलते रहेंगे अंत तक
फ़क़त इन्हीं के साथ चलते रहेंगे अंत तक
अगर जल जाना ही मुकद्दर हैं, शमा से
तो इसी प्रेम में परवाने जलते रहेंगे अंत तक-
चाँदनी रात के साथ शमा जलती रही,
दिल तड़पता रहा, रूह मचलती रही!
आँखोँ से लाख दरिये बहे मगर फिर भी,
ना बुझी आग सीने में, शमा जलती रही!
हमने सोंचा था शायद सकून मिल सके,
इक ख्वाहिश थी जो दिल में पलती रही!
दोस्ती, फिर इश्क, फिर रूहानी रिश्ता,
साथ तेरे रहते रहते, शय बदलती रही!
राह-ए-इश्क में तलाश जब से थी तेरी,
इक तेरी याद थी जो साथ चलती रही!
उफनते सैलाब में बह गए शब-ए-वस्ल को,
वो शमा थी...पिघलती रही, पिघलाती रही!-
बंद लिफाफे में महफूज़ खयाल तेरा,
दस्तक मेरी यादों को आज दे गया,
मैं शमा बनकर यूँ ही पिघलती रही
और परवाना शब-ए-हिज्र भिगो गया !-
"दुनिया में इश्क़ करने वालों की जब कभी कमी होगी,
क्या जियेगा इन्सान जब साँस लेने की कोई वजह नहीं होगी ?
बिन बादल ये ज़मी अधूरी सी लगने लगेगी
और
टूट जायेगा गुरूर एक शाम जल कर 'शमा' का,
मर मिटने वाले परवानों की जब कभी कमी होगी ।"
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नूर-ए-रोशनी के चाह में, पतंगे की बंदिश तो देखिए,
बिखेर रखे है पर पतंगों के, शमा-ए-रंजिश तो देखिए।।
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कुछ ऐसा था मेरा
वो ग़म में भी मुस्कराना,
जैसे मोम का पिघलना,
पर
श़मा का जलते जाना..
-©निकिता श्रीवास'तमन्ना'-