" चाहते तो किसी और तरीके से..,
तुम मुझे बर्बाद कर सकते..!
बाहर से वार करते तो..,
सिर्फ बदन ही मरता मेरा..!
पर तुने तो दिल में उतर कर..,
मेरी रूह का ही क़त्ल कर दिया...!
अब भला तेरी खमोशी...,
क्या समझेगी मेरे शब्दों का हाल..!! "-
विश्वास में जब विष मिल जाता है,
कितना भी मजबूत हो रिश्ता टूट जाता है।।-
रहो सावधान भौहें तान,
परखो देखो करो पहचान,
भेड़िया आया है या फिर,
इन्सान रूप में है इन्सान,
(पूरी रचना अनुशीर्षक में)-
जब सोचते है कि सब ठीक हो गया है।
जो कुछ भी था वो अतीत था।
उसको लेके बैठे रहेंगे तो कही के नही होंगे,
ना तो विश्वास बचेगा, जो रोज तिल-तिल टूट रहा है।
ना तो रिश्ते में प्यार बचेगा। जो भले ही निभाया
जाये पर उस रिश्ते कि आत्मा अंदर से मर चूँकि होगी।
पर फिर कही ना कही से कुछ फिर से ऐसा देखने
को मिल जाता है कि दिल क्या आत्मा, विश्वास
सब कुछ मर जाता है।
क्यों विश्वास को तोड़ा जाता है क्यों ?
😥😥😥😥😥😥-
विश्वासघात वो आघात है
जो किसी अपने पर किसी अपने
द्वारा ही किया जाता है
ये वो कुठाराघात है
जो एक बार हो जाए तो
जीवन भर पीड़ा पहुँचाता है-
काँप गयी रूह जब ऐसा मंजर देखा
अपनों के ही पास मिला खंजर देखा
हाथों में न कोई तीर,कमान न औजार था
रीसते रक्त पर नमी आँखो की बंजर देखा-
बहुत तकलीफ़ होतीं हैं लोग जब विश्वास
से
विश्वास दिला कर विश्वासघात कर जातें हैं
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