कभी किसी से वफ़ा करूँ मैं
ये ख़ूबसूरत नशा करूँ मैं
मुझे नज़र में कभी बसाओ
तुम्हारे दिल में रहा करूँ मैं
तुझे जो देखा ख़ुदा को देखा
नमाज़ तेरी अदा करूँ मैं
मुझे नज़र से उतार देना
वफ़ा से जब भी दग़ा करूँ मैं
तेरा है 'आरिफ़' तेरा रहेगा
तुझे ही ख़ुद में भरा करूँ मैं-
हर दर्द हर सितम सराखो पर रखते हैं
मोहब्बत अगर न मंजूर तो खुलेआम वफ़ा करते हैं।-
मुहब्बत कभी तुमको मुझसे नहीं थी
गलतफ़हमियाँ यूँ न पाला करो तुम!-
जब से उसने..
'मेरे सर पर हाथ रख कर' अपनी 'वफ़ा की कसमें' खाईं हैं, न..
...हाँ, तब से ही बीमार हूँ, 'मैं' इश्क़ में..-
एक तस्वीर और उसका फ़लसफ़ा कौन जाने
वो मुझसे ख़ुश है या फिर है ख़फ़ा कौन जाने
मेरी इन आँखों की आरज़ू अब मिस्मार हो गई
अब मेरे नसीब में है भी क्या वफ़ा कौन जाने?-
ख़फ़ा भी हुए, वफ़ा भी किए, जफ़ा भी कर गए..
जाने कैसे 'वो एक शक्स' ,मोहब्बत की सारी रस्में अदा कर गए..!!-
औरों का गम अपनों से कहा जाता है |
अपने ही गम दे तो किससे कहें ?
जो वफा थे वो बेवफा हो गए |
अब हम क्या हैं किससे कहें?-
कोई तो मेरे इन हालात का ज़िम्मेदार होता
कोई तो मेरी इस मोहब्बत में हिस्सेदार होता
कह - कहकर कहानियाँ छू लिया आसमान
कोई तो मेरी इस सौगात का किस्सेदार होता
ज़िन्दगी के मुकाम में कामयाबी हासिल की
कोई तो अब मेरी इस दौलत से वफ़ादार होता
ग़म सहे हज़ारों पर टूटा नहीं कभी भी मैं
कोई तो मेरी इस हिम्मत में साझेदार होता
जिसने जो कहा उसको मान लिया हमेश़ा
कोई तो मेरी इस सीरत में फ़रमाँबरदार होता
इन्सान तो सबकी बातों में आ ही जाता है यहाँ
कोई तो होता जो ज़िल्लत में समझदार होता
दुनिया का बोझ बिना थके उठाता रहा "आरिफ़"
कोई तो यहाँ मेरी इस ताक़त का भागीदार होता
"कोरे काग़ज़" पर लिखना चाहता हूँ दर्द अपने
कोई तो अब मेरी इस ज़ुर्रत का दुकानदार होता-
इतने सालों जो तुमने संवारा मुझे
क्या ख़बर थी कि पल में बिखर जाएंगे
इतने सालों चले तुम सफ़र साथ में
क्या ख़बर थी अचानक बिछड़ जाएंगे,
खाई अहद-ए-वफ़ा हम तुम्हें चाहेंगे
हर खुशी दुनिया की तेरे दामन में लाएंगे
तुमने तोड़ा हर वादा बड़े सलीके से ऐ जां
क्या ख़बर थी कि तुम यूं मुकर जाओगे,
तुम चले तो गए पर ये सोचा नहीं
ये शहर था नया हम किधर जाएंगे
तेरी यादों से हम क्या शिकायत करें
यूं तड़पने से अच्छा तो मर जाएंगे........!-