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रगो में अभियांत्रिकी हम जन्म से पाते हैं,
अखंडित शक्ति की परंपरा हम बखूबी निभाते हैं,
कोई पूछे तो विश्वकर्मा की संतान हैं हम,
लोहे का गुरूर लोहे से तोड़ कर हम बताते हैं।-
लोहे का स्वाद लोहार से मत पूछो....
उस घोड़े से पूछो जिसके मुँह में लगाम है ।-
लोहार हैं हम जरा कम करते हैं वार
लेकिन हर वार हमारा होता है जोरदार, दमदार!-
✨ लोहार ✨
आधुनिकता की बात छोड़िए, उस समय लोहारों का बड़ा वर्चस्व था।
यह बात जमे शहरों या कस्बों की नहीं, गांँवों की थी, जो दिलचस्प था।✨
मेरा बचपन मेरे नाना गांँव में बीता वहाँ पर उस समय बिजली नहीं थी।
मिट्टी तेल से चिमनी जलती थी, राहगीरों के लिए पक्की गली नहीं थी।✨
आय का जरिया खेती ही था तो हल चलाने सभी तैयार थे।
लोहे के लिए फैक्ट्री नहीं, हल के फाल के लिए लोहार थे।✨
उस समय मैं बच्चा था, देखा कि यहाँ काम एक साथ करना पड़ता है।
पति पत्नी एवं बच्चे, सभी को थोड़ा बहुत दो दो हाथ करना पड़ता है।✨
न ट्रैक्टर था न हारवेस्टर, हल ही खेत जोतने का साधन था।
भूमि उपजाऊ थी, उपज भी अच्छी थी, अच्छा उत्पादन था।✨
आज के उन्नत प्रौद्योगिकी वाले इस युग में लोहारों के कार्य भुलाए नहीं जा सकते।
परिंदे यदि पर मारकर रफूचक्कर हो जाएँ तो वापस उन्हें बुलाए नहीं जा सकते।✨-
हादसा
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किसान सोफ़े पर बैठा टीवी देख रहा था
बैल शान्त बैठा हुआ था
हल जंग खा रहा था ...
लोहार चारपाई पर लेटा पीठ सिधा कर रहा था
लोहा ठंडा पड़ा था
हथोड़ा बिना बेंट का सो रहा था...
राज वातानुकूलित कमरे में मुस्कुरा रहा था
हाथो में क्रीम लगा रहा था
करनी -साहुल बच्चों के साथ चल रहा था...
बढ़ई पलंग पर आसन जमा रहा था
दाग जख्म का मिटा रहा था
रुखना - बसुला जंग खा रहा था...
हलवाई योग सिखा रहा था
बिन चीनी के जीवन में मिठास ला रहा था
बर्तन चकाचक हो गया था...
खोमचे वाला दरवाजे पर निर्गुण गा रहा था
घर सबकुछ है बता रहा था
अपना स्लोगन भुला रहा था...
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इश्क़ के इम्तिहान ईमानदारी से देने होंगे,
इसमें नकल के नजारों के नाम कोई इनाम नहीं होंगे।
~ लोहार
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वो जितना भी है अब बस ज़हन में है,
शायद उतना
की बयां करके बाँटा नहीं जा सकता।
~ दीपक टम्टा 'लोहार'-