सौरभ शर्मा   (सौरभ "रामधुन")
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Joined 16 August 2018


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चलो रावण जल दिया गया
रावण फूंक दिया गया
दशहरा मन लिया गया
चलो अब अपने अंदर के राम को उठाओ
और ले चलो अपने घर

(अनुशीर्षक पढ़ें)

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मैं नपुंसक हूं

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उसे लगता है मैं उसे दूर कर रहा
लेकिन मैं उसे मजबूत कर रहा

मैं साथ रहा तो वो बहुत टूटेगी
खुद से मैं उसे महफूज़ कर रहा

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अब मैं वो नहीं रहा
अब मैं अच्छा नहीं रहा

किसे ढूंढते हो मुझमें
मैं पहले जैसा नहीं रहा

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जीवन में दुखों का आना सामान्य घटना है
लेकिन जब दुख
हमारे जीने में शामिल हो जाए
तब यह भयावह हो जाता है

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प्रेम स्वतः नहीं होता
उसे कोई सिखाता है
कि हाथ सब पकड़ते हैं
लेकिन हाथ छुटने पर
छुअन हाथों में कैसे रह जाए
वो प्रेम सिखाता है
(अनुशीर्षक पढ़ें)

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एक सवाल है
कि मेरी जगह पर कोई और होता
तो वो क्या करता?

मतलब कि मेरी जगह पर कोई भी हो सकता है
और वो जो भी होता
मुझसे बेहतर करता
इससे दुखद क्या होगा?
कि मेरी जगह पर कोई भी हो सकता है
और वो मुझसे बेहतर होता

दूसरे ढंग से सोचूं
तो मैं किसी की जगह पर नहीं हो सकता
यहां तक कि मैं खुद भी अपनी जगह नहीं ले सकता

मुझे अब अपने होने पर पश्चाताप होता है
कि मेरे होने से तो कुछ ठीक नहीं हो रहा
यानी मेरे न होने से सब ठीक होता

तो फिर मैं यहां क्यों हूं??

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ये सारी कायनात
हमें बहुत ध्यान से सुनती है
देखती है
इसलिए बोलो
सोचो
या करो बहुत ध्यान से

वो बातें तो बहुत ध्यान से बोलो
जिसे तुमने ख़ुद से कहा है
कि वो सुनता है
ऐसी बातें बहुत ध्यान से

वो ऐसा जिन्न है
जो तुम्हारी ख्वाहिशें पूरी करता है
वो सबसे पहले
जो तुम्हें बर्बाद कर दे

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मैं कायर हूं

(Read in caption)

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if you want to kill someone from inside give him hope and then snatch it

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