उसकी इतनी सारी फोटो Save कर के रखने का क्या फायदा हुआ?
उतनी हिम्मत ही नहीं होती कि एक नजर जा कर देख लूँ-
"वो लड़का जिसे सन्नाटा पसंद है"
कबीर की नगरी में जन्म लिया ... read more
ज़िंदगी "तारक मेहता का उल्टा चश्मा" सीरियल जैसी चल रही है। पोपट लाल जैसा दुबला पतला हूं,शादी भी नहीं हुई है। भिड़े की तरह मास्टर हूं।तारक मेहता की तरह लेखक हूं।डॉ हाथी की तरह बस खाने के बारे में सोचता हूँ। सोढ़ी की तरह अपनी स्कूटी पर लोगों को बैठा लेता हूं। जेठा लाल की तरह ज़िन्दगी में मुसीबतें कम नहीं हो रही। अय्यर की तरह नाम का इंजीनियर हूं जैसे वो साइंटिस्ट है। अब्दुल की तरह जितना भी करूं कोई अधिक इज़्ज़त नहीं है। बाबू जी की तरह हमेशा इरिटेट रहता हूं।
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मां को मेरा जन्मदिन याद है
मुझे मां का जन्मदिन नहीं याद
शायद इसलिए कि हम यही मानते रहे
जो जन्म देता है
उसका कहां जन्म होता होगा?
ये सच ही तो है
जो जन्म देता है
जो जीवन का निर्माण करता है
वो अवश्य की अवतरित होता होगा
आखिर ईश्वर की परिकल्पना ऐसे ही तो हुई होगी-
जब आप सीधे होते हैं
आपका सभी फायदा उठाते हैं
"सभी" मतलब "सभी"
यहां कोई अपवाद नहीं है-
एक दिन जंगल में घुस आए
धुआं फेंकते
गरजते
लोहे के बड़े बड़े काले पीले जानवर
उन्होंने रौंद डाले चिड़ियों को घोंसले
गिरा दिए लाखों पेड़
कुचल डाले छोटे बड़े कई जानवर
(Read in caption)-
ईंद के बारे में सोचता हूँ
तो हामिद याद आता है
दादी याद आती हैं
चिमटा याद आता है
प्रेम चंद याद आते हैं
ईदगाह याद आता है
कितनी सुंदर बात है न!
कि एक कहानी
एक त्यौहार से इस तरह जुड़ गई है
कि जब भी वो त्यौहार आयेगा
वो कहानी भी याद आएगी
उसे लिखने वाला याद आएगा-