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अठारह सौ सत्तावन मे भारत की जिसने की अगवानी थी,
वह साहसी, निडर, वीरांगना; वह स्त्री श्रेष्ठ अभयदानी थी।
धूर्त फिरंगियों को जला कर खाख करने वाली अंगारधानी,
रणभूमी मे वीरगति को प्राप्त हुई लक्ष्मीबाई महारानी थी।-
महान वीरांगना झांसी की रानी लक्ष्मीबाई
की जयंती पर शत् शत् नमन 🙏
आपका शौर्य अनंतकाल तक बेटियों को
पराक्रमी बनाते हुए राष्ट्र सेवा के लिए प्रेरित करता रहेगा..-
ओज और तेज की मल्लिका
हर कला में प्रवीण थी
कहाँ उसे किसी से मतलब
देश भक्ति में लीन थी
जिस उम्र में खेलते सभी
गुड्डे और गुड़ियों से
वो खेलती नाना संग
कृपाण और छुरियों से
नाना सीखते युद्ध कला
वो छिपकर देखा करती थी
बड़े ही तन्मयता से वो
उसको सीखा करती थी
सूर्य सा था ओज जिसमें
ऐसा शौर्य था भी किसमें
वो उन्मुक्त गगन की स्वामिनी
इतना धैर्य भी था किसमें
हाथी पर बैठना था मनु को
उसने ये जिद ठानी थी
तेरे भाग्य में हाथी कहाँ
नाना नेे बतलायी थी
मेरे भाग्य में एक नहीं
सौ हाथी हैं नाना
जिसने अपने भाग्य को भी
चुनौती दे डाली थी
जिसने कभी भी हार ना मानी
वो महारानी लक्ष्मीबाई थी..【भाग-२】
🚩क्रमशः🚩-
सुख वैभव को छोड़कर
उसने खड़ग धारी थी
जिसने अंग्रेजों को तबाह किया
एक अकेली नारी थी
कितनी पीड़ा आयी
कितने दुःख का पहाड़ गिरा
खुद को निसहाय नहीं समझा
आगे बढ़ कर वार किया
पवन नामक अश्व पर चढ़
वो पवन से बातें करती थी
पूरी अंग्रजों की फ़ौज भी
उस नारी से डरती थी
साथ नहीं दिया किसी ने
अकेले बलदाएं थामी थी
एक अकेले दम पर उसने
सबको धूल चटायी थी..
देखा कौशल देखी कलाएं
कैसी विधा उसने पायी थी
उसके तलवार के आगे
सबने मुँह की खाई थी
सभी चकित हो कर देखते
नारी थी या काली थी
जिसके आँखों ज्वाल दहकता
वो महारानी लक्ष्मीबाई थी.....【भाग 1】-
जो प्रेम परिभाषा समझ नहीं पाता है
बंदूक उठाना लाजिमी बन जाता है
नहीं तो साहिब अत्याचार बढ़ जाता है
इसलिए महारानी लक्ष्मीबाई ने अत्याचारियों के प्रति तलवार उठाई
लड़ते लड़ते वीरांगना ने वीरगति पाई
भ्रष्टाचारीयों के सामने झुक नहीं पाई
महारानी लक्ष्मीबाई के इतिहास से कुछ सीखना है
जय लक्ष्मीबाई जय लक्ष्मी बाई बोलना है
जय भवानी
लक्ष्मी बाई महारानी
🚩झांसी की रानी की आज जन्म जयंती🚩-
हे ईश्वर!
एक अरदास है
हजारों आशायें है
अब और संभव नहीं
और देहमर्दन नहीं
थक चुका है माँ भारती का तन
लौटा सके तो लौटा दे
नारीशक्ति के उस स्तंभ को
अब बस सहारा एक है निर्भया का
लौटा दे संघर्ष की खङग को
लौटा दे लक्ष्मीबाई को... ( जय हिंद )-
सत्तावन की तलवार लिखूँ।
शोणित की बहती धार लिखूँ।
दुश्मन की छाती पर पड़ता,
रानी का इक इक वार लिखूँ।
(अनुशीर्षक में पढ़िए)-
थी घनघोर घटा छाई और भभक उठी थी ज्वाला ।
जब सन सत्तावन में लड़ रही थी ,भारत मां की वीर बाला ।।-