अब के हम बिछड़े तो शायद कभी ख़्वाबों में मिलें
जिस तरह सूखे हुए फूल किताबों में मिलें-
मज़हब है 'गुलज़ार' मेरा, रूह भी रूमानी है,
जिस्म हिंदू है मेरा, ज़ुबाँ मुसलमानी है...-
तुमसे बिछड़े कुछ इस कदर , तो कहानी बन गयी,
हमने फूल जो तुमको दिया , वही रूहानी बन गयी ।
तुम कहते हो... बिछड़ गये तो ख्याबों में मिलेंगे ,
तुम कुछ न कहो हम तो जिन्दगी भर साथ चलेंगे ।
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जब बहुत हो गुमां की अपनी तो आज़ादी है
जिया कर लो शादी, शादी इलाज़ ए जवानी है
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मोहब्बत लेने देने की बशर क्या पूछते हो तुम बात
ख़ाली किया है ख़ुद को मगर फ़िर भी ख़ाली हूँ
- दीक्षा
Giving all, receiving nothing.-
उसे भी काम से मोहलत नहीं है,
मुझे भी पहले सी फुर्सत नहीं है।
मुहब्बत है, मुहब्बत ही रहेगी,
मुझे उससे कोई नफ़रत नहीं है।
मैं सोचूँ दूर अब जाने का उससे,
अभी इतनी भी तो ग़फ़लत नहीं है।
मिलेंगे हम उसी अंदाज़ में फिर,
मेरी इससे बड़ी हसरत नहीं है।
मिली है छत तुम्हें तो है शिकायत,
न जाने कितनों के सर छत नहीं है।
सलामत हैं अगर माँ-बाप घर में,
बड़ी इससे कोई दौलत नहीं है।-
अदाए दिलकश
नज़रो का तीखा रुख ,
हुस्न वालों जरा देखो ,
सादगी क्या चीज़ है ..-
घड़ी घड़ी न इधर देख ये धड़कन रुक जाती है ,
कुछ इख़्तियार अपनी आँखों को भी सीखा दे..-
ज़िंदगी तजुर्बे से ज़्यादा क्या होती है
जिसमें हर सिम्त बस जफ़ा होती है
झांकता है जिस खिड़की से शक़
उसी के दर से मुहब्बत दफा होती है
हर मसाइल के अपने मसअले हैं
मशहूर मसअला तो वफ़ा होती है
~ नटखट
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