सत्य और मिथक की
क्षणभंगुर संयुक्ति हो!
हो कौन तुम?
अव्यक्त की अभिव्यक्ति हो।
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पढ़ाई की भाषा वही होनी चाहिए जो समाज की भाषा है और हमें सभी समाज की भाषाओं का ज्ञान होना चाहिए।
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याद-वर नहीं आती,
इस तरह खुदगर्ज हो गया हूँ ।
मिट गया ईमान, धर्म और इन्सानियत,
रह गया है तो बस अधर्म, अहंकार और स्वार्थ,
मनुष्य की नियति ही उसकी प्रकृति होती है ।
संभव ही है कि वो खो चुका है सब कुछ,
सिवाय अपने अहंकार के ।।-
जरूरी तो नहीं अश्क पर अश्क बहाये जाना
जरूरी तो नहीं हर शख्स को अपना बताये जाना
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कहीं एक हादसा मेरे इंतजार में बैठा होगा
पता नहीं कब उसका इंतजार खत्म हो जाए ।-
हकीकत कुछ और होती है
प्रत्यक्ष प्रमाण कुछ और होता है
जब तक प्रतीत होता है
तब तक बहुत बड़ा छल हो चुका होता है.-
कलम से निकलती कविताएँ
और मन में भरा छल
हे प्रभु कैसा हूँ मैं
छल कपट की नीति मेरी
तथ्य बताता हूँ मानवता के
खुद मैं झूठ का पुतला हूँ
सत्य बताता हूँ मानवता के
कष्ट दिये सबको मैने
मै ही सिद्धांत बताता हूँ मोक्ष के
कैसा पापी हूँ मैं....
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आत्माएं विचरण कर रहीं हैं
किंचित भयभीत बैठा हूँ मैं
सोच रहा हूँ जीवन्त व्यथाएँ
भटक रहा हूँ ब्रह्म पथ पर....
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जीतूँगा मैं ही,
खुद से ये वादा करो ।
जितना सोचते हो तुम,
कोशिश उससे ज्यादा करो ।
तकदीर रूठे, रूठ जाने दो ,
पर हिम्मत न टूटे ।
इतना मजबूत इरादा करो ।-