याद-वर नहीं आती, इस तरह खुदगर्ज हो गया हूँ । मिट गया ईमान, धर्म और इन्सानियत, रह गया है तो बस अधर्म, अहंकार और स्वार्थ, मनुष्य की नियति ही उसकी प्रकृति होती है । संभव ही है कि वो खो चुका है सब कुछ, सिवाय अपने अहंकार के ।।
कलम से निकलती कविताएँ और मन में भरा छल हे प्रभु कैसा हूँ मैं छल कपट की नीति मेरी तथ्य बताता हूँ मानवता के खुद मैं झूठ का पुतला हूँ सत्य बताता हूँ मानवता के कष्ट दिये सबको मैने मै ही सिद्धांत बताता हूँ मोक्ष के कैसा पापी हूँ मैं....