मैं हूँ चकोर तू चंदा है
मैं चातक तू जलकण
मिलने को आतुर मन
चाहे होना मुक्त मगन
तन बैठ अटारी राह तके
गहराये रतिया काली
छोडूं तन त्यागू जीवन
सँग पाने मैं मतवाली
जग प्रीत नहीं है मुझको
क्या रोक रहा है तुझको
पल भर का है यह खेला
मन बहुत भार क्यों झेला
मैं उड़ जाउंगी इकदिन
रह जाएंगे बस पलछिन
है साद दे रहा कोई
अब जागी चेतना सोयी
मन हार रहा है पलपल
है नीर बह रहा कलकल
उठ गयी हूं छोड़ अटारी
घर बुला रहा है, ना री! ना री! ना री!-
मेरे मन पर आपका पूरा है अधिकार ।
साथ आपका है बना, जीवन का आधार ।।
नैना दो दीपक जले, आशा ले आकार।
आप निहारो तब करूँ, मैं रच रच सिंगार ।।
मीरा ने पद में कहा, प्रेम नहीं है भार।
प्रेम भक्ति में लीन हों, पा जाएँ संसार ।।
मैं से मैं की प्रीत है, मैं से मैं की रार।
बाहर जग में कुछ नहीं, भीतर ही है सार।।
माया तृष्णा लोभ से, करो सदा इंकार।
मान करो सबका सदा, प्यार तुम्हारे द्वार।।-
गहरे बैंगनी रंग की रजत किनारी वाली साड़ी पर बिखरी थी तितलियां रंगबरंगी
केनवास पर उतरने से बहुत पहले ड्राइंग पेपर पर पहले आम, सेब, अँगूर और केले उतरते रहे मोम के रंगो से
फिर कहीं नीम पीपल की पत्तीयां चार्ट पेपर पर उतरी
फिर मोंटेसरा और कमल के पत्ते चितरे गए
फिर केनवास पर तैलीय रंग से उकेरे गए बतख
साड़ी में सजी नारी उतारने में लगे बरस
तब भी उतरी वह वैसी नहीं जैसी उसे देखती थी मेरी आँखें
नज़र में बसा सब कैसे भी बयां न हो सका
न लिख कर, न कह कर, न खींच कर.......
(किसी सुंदरी को नज़र भर देखते हुए )-
पहल का पीसीआर और औपचारिकता के वेंटिलेटर के दम पर भी क्या रिश्ते जिये हैं कभी??
-
मैं सब "सच" कहती हूं
तुम मुझसे जान छुड़ाओगे!
वक़्त का लेकिन क्या करोगे
वक़्त कहेगा सब "सच" जब?-
कहीं इक काश कि रहता याद बहुत
कहीं इक ग़म कि, रहता है याद बहुत
जाने कितने जीबी(GB) संजोये हैं हमने
इस मन की बात है, और है बात बहुत
उम्र भर बहा किया, गया नहीं नशा कहीं
इस ठोर चुप दबी, उस ठोर आलाप बहुत
जीते रहे जीते रहे तेरे लिए तेरे लिए
न रहे तब हुए हम, तेरे लिए ख़ास बहुत-
तुम्हारी हाँ में ही राज़ी थे हम
कब कहा तुमसे कि वादा निभाओ?
तुमने कहा, छूना चाहते हो हमें
हमने रूह रख दी आगे, कि छू जाओ!
रतजगों से कब इनकार था यार?
बोझल आँखों से भी कहा, कि आओ! बैठो! बतियाओ !-
इक तो लिबास काला, फिर जुगनू इर्दगिर्द
तुमको यूँ देखना है, आसमां में चाँद देखना-