"किसी कहर से कम नहीं थी, उसकी आवाज़ उस रात,
राख के तरह फूँक डाले, उन ज़ालिमों ने उसकी ईज्जत "
-
रेप
ग़लती उसकी ही होगी
बेवक्त वो घर से निकली होगी
यह शायद तंग कपड़े पहने होगे
क्या पता लड़कों से मिलती होगी
और न जाने क्या करती होगी
जिसका अंजाम ये मिला उसको
ख़ैर हममें क्या करना है
कौन सा ये हम पर गुज़रा है
अरे मियाँ ! चैनल बदलो
इस न्यूज़ ने तो बोर कर दिया है-
वो छोटे छोटे कदमों से चलना ही शुरू की थी।
अपनी छोटी-छोटी शरारतों से सबके चेहरे
पर हंसी ला देती थी।
अपनी फूल जैसी मुस्कान से पूरे घर में रौनक
कर देती थी। माँ-बाप के आखों का तारा थी।
जिसकी प्यारी-प्यारी बातों से पत्थर भी मोम
हो जाता था। वो तो छोटी सी बच्ची थी।
ढंग से बोल तक नहीं पाती थी।
जिसने ठीक से अपना बचपन तक नहीं देखा था।
उसके साथ ये अन्याय हुआ?
जिसमें उसकी तनिक भी गलती नही थी।
सात साल की बच्ची के साथ ये कैसा
अपराध हुआ? उसपे इतना घिनौना जुर्म हुआ।
वो कितना रोई होगी, कितना चिल्लाई होगी,
ये सब सुनकर, देख कर, मेरा कलेजा फ़ट गया है।
तो उस बेटी के माँ-बाप कैसे सोये होंगे रातों को?
जिस मासूम को देख कर मन में प्यार उमड़ के
आता है। उसके साथ ऐसी हैवानियत पर उतर
आये। तुम्हारा जमीर तुम्हें धिक्कारा नहीं तुम
तो जानवरों से भी घटिया हो।-
भारत आगे बढ़ा है,
अब बाबा को दहेज की नहीं,
सुरक्षा के डर से बेटी नहीं चाहिए!-
दरवाज़े के अंदर, दरवाज़े के बाहर,
अपनों के बीच, बेगानो से घिरी,
लोगों के बीच अकेली अबला खड़ी,
मैं स्त्री हूं! अपनी इज़्ज़त बचाती, स्त्री हूं!
विद्यालय में स्कर्ट खीचती,
सड़क पर सूट को ठीक करती,
घिनौनी नज़रों से खुद को बचाती,
मैं स्त्री हूं! बेशर्मो से शर्म खाती, स्त्री हूं!
चाचा के "लाड़" को सहती,
अनजानों के "धक्के" को झेलती,
अनचाहे चाह का खुद पर हक पाती,
मैं स्त्री हूं! बोलने पर चुप करवाई जाती, स्त्री हूं!-
हम लड़कियां फैशन (शौक) में छोटे कपड़े पहनते हैं ,
आपके लिए अपने बदन की नुमाइश नहीं करते ...
यह आपका नजरिया ही गलत है साहब !
हम आपसे रेप करने की कभी फरमाइश नहीं करते...-
एक डर
जिसको वरदान है
अमरत्व का..
स्त्रियों के हृदय में
सदियों से सोया है
क्षुधा जागती है
निगल लेता है
आत्मा का एक हिस्सा
फिर सोता है
किन्तु मरता नहीं..-