आंखें बंद कर किसी पर ऐतबार न कर।
खुद से ज्यादा किसी से प्यार न कर।।-
खुदा बेटियों की तकदीर फुरसत में बनाता है
तुम्हे दर्द नहीं होता उनकी लकीरे मिटाने में
लोग तरस जाते है एक औलाद को पाने में
तुम्हे तरस नही आता बेटियां जिंदा जलाने में-
गौर से देखने पर ये बादल चलते नज़र आते हैं,
धूप नहीं है फिर भी ये पेड़ जलते नज़र आते हैं,
वो राहों से गुज़रती है फैलाये नूर की चादर,
तो ये नज़ारे भी रश्क़ से पिघलते नज़र आते हैं।-
_उम्मिद_
तेरी रहमत से ही
जिंदा हूँ -ए -मालिक......
के मै "उम्मिद" का परिंदा हूँ
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(हुनर)
इरादों को माप सके कोई
किस जिगर की है औकात
अँधेरा समझ खो दी अक्षर
चमकते तारों की सौगात।।
हमनें समझाया पर वो समझ-न-पाए
कह भी दिया जिसे कान सुन-न-पाए
अपना मिज़ाज है उल्फ़त का इलाज
दुश्मन ने मारा पर हम मर-न-पाए।।
याद करो तुम बिता ज़माना
तुम्हारी सज़ा बनी मेरा खजाना
सब कुछ नहीं है हाथ तुम्हारे
दुनियाँ चलती है रब के सहारे।।
बेच नहीं तू अपना ईमान
यहाँ कर्म है एक बलिदान
दोस्त है केवल दो पल का
थूकें गा फ़िर तुझ पे जहान।-
यू ही नहीं, दो दिल मिल बैठते हैं।
खुदा की रहमत हो, तो,
पर्वत पर रहने वाले भी, ज़मी वालों से, इश्क कर बैठते हैं।।-
तुम कहते हो कि तुमने झुकना नहीं सीखा
जनाब....मैं उस ख़ुदा पर यकीन करती हूँ
जो चट्टानों तक को हिला कर रख देता है!-
जिस जिसको भी श़िकायत है ख़ुदाई से
सिर्फ़ उसी पर अब क़यामत है ख़ुदाई से
सारे बिगड़े बन जाया करते हैं ख़ुद-ब-ख़ुद
जिस जिसको भी मोहब्बत है ख़ुदाई से
हर ख़ुशी और ग़म में याद करता है उसको
सिर्फ़ यही तो बे-पनाह चाहत है ख़ुदाई से
जितना मिला है उस से ख़ुश नहीं कोई भी
क्या सिर्फ़ यही ज़रूरत है अब ख़ुदाई से
दुनिया का हर एक इन्सान उसका बन्दा है
इनको सताना भी बुरी आदत है ख़ुदाई से
तुम सब उसकी रहनुमाई को कब समझोगे
सारी दुनिया को मिलती रहमत है ख़ुदाई से
दोस्त का नहीं तो ख़ुदा का नहीं "आरिफ़"
सबको मिली अच्छी क़िस्मत है ख़ुदाई से
"कोरा काग़ज़" भेजा है उसने सबको यहाँ
ज़िन्दगी भी सबकी सहमत है ख़ुदाई से-