Mohd Ghazali  
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Joined 26 February 2019


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Joined 26 February 2019
23 MAY 2022 AT 22:09

एक हसरत जो बरसों से अधूरी है मेरी,
खुश-क़िस्मत से ऐसी भी क्या दूरी है मेरी।

गर ये शौक़ होता तो कब का मिट गया होता,
पर तुझे चाहना तो जैसे मजबूरी है मेरी।।

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31 MAR 2021 AT 0:38

कहीं नेकी तो कहीं शराफ़त देखते हैं,
कहीं दिल में बसी मुहब्बत देखते हैं।

मेरे मुल्क के लोग अजीब हैं लेकिन,
यहाँ शादी के लिए हैसियत देखते हैं।

यूँ तो हम भी हुवे हैं शिकार ज़माने के,
लोग मगर उसी को फ़क़त देखते हैं।

सुना है जो भी होता है अच्छे के लिए,
चलो हम भी आज़मा कर क़िस्मत देखते हैं।

हमें खुद पे ही तरस आ जाता है मोनिस,
जब भी आईने में अपनी हालत देखते हैं।

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27 JUN 2020 AT 18:40

या खुदा! ये किस तरह का दौर आया है,
हर जानिब ख़तरा ही ख़तरा मंडराया है।

कहीं बिजलियाँ गिर रही हैं आवाम पर,
तो कहीं टिड्डियों ने हुड़दंग मचाया है।

कहीं भूकंप के झटकों से परेशाँ हैं लोग,
तो कहीं हमें तूफ़ान ने आज़माया है।

एक तरफ कमी है तिब्बी इंतिज़ामात की,
तो एक तरफ कोरोना का बढ़ता साया है।

माअशियत डूबती जा रही है मुसलसल,
और रुपिया भी मज़ीद लड़खड़ाया है।

कहीं रोज़गार ठप्प तो कहीं सरकार ने,
फिर पेट्रोल-डीज़ल का दाम बढ़ाया है।

कहीं नेपाल ललकार रहा है हमें,
तो कहीं चीन घर में घुस आया है।

फिर भी है भरोसा मुझे तेरी ज़ात से आख़िर,
जो भी तूने चाहा है, होता तो वही आया है।।

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27 JUN 2020 AT 15:49

आज भी तबीअत कुछ ना-साज़ सी लगती है,
ख़ामोशी में भी तेरी आवाज़ सी लगती है,
क़दम-ब-क़दम जो तेरे साथ चला था मैं,
के तू आज भी मुझे मेरी हमराज़ सी लगती है।

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27 JUN 2020 AT 15:24

जैसे राहगीर को रहबर की ज़रूरत होती है,
दिलदार को एक दिलबर की नज़र चाहिये,
मैं तो अखबार हूँ, बाज़ारों में बँट जाता हूँ,
मुझे क्या चाहिए, बस एक तेरी खबर चाहिये।

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21 JUN 2020 AT 16:13

तुम किसी मुहब्बत का असर क्या जानो,
मुहब्बत करने वालों की क़दर क्या जानो।

तुम्हें दिल जलाने से ही फ़ुरसत नहीं,
तुम दिल लगाने का हुनर क्या जानो।

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13 JUN 2020 AT 6:22

वो हमसे मिले हम उनसे, दिल का दिल से मुसाफ़ा हुआ,
धड़कन बढ़ी, चमक बढ़ी, न जाने क्या-क्या इज़ाफ़ा हुआ।

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13 JUN 2020 AT 1:09

भोली भाली, सीधी सादी, सूरत इतनी प्यारी है,
फूल सी हँसी है उसकी, ख्वाबों की फुलवारी है,
एक नज़र जो देख ले, फिर देखना कुछ ना चाहेगा,
नूर से बना के रब ने, हूर सी उतारी है।

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5 JUN 2020 AT 12:35

यूँ अपनी बुलंदियों पे तुम, नाज़ ना इतना करो,
डाल ऊँची जितनी होती है, कमज़ोर उतनी होती है।— % &

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1 JUN 2020 AT 14:19

वो जब छोड़के मुझको, याद मुझे तड़पाने आये,
तब जाकर के होश मेरे, ठिकाने आये।।

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