या खुदा! ये किस तरह का दौर आया है,
हर जानिब ख़तरा ही ख़तरा मंडराया है।
कहीं बिजलियाँ गिर रही हैं आवाम पर,
तो कहीं टिड्डियों ने हुड़दंग मचाया है।
कहीं भूकंप के झटकों से परेशाँ हैं लोग,
तो कहीं हमें तूफ़ान ने आज़माया है।
एक तरफ कमी है तिब्बी इंतिज़ामात की,
तो एक तरफ कोरोना का बढ़ता साया है।
माअशियत डूबती जा रही है मुसलसल,
और रुपिया भी मज़ीद लड़खड़ाया है।
कहीं रोज़गार ठप्प तो कहीं सरकार ने,
फिर पेट्रोल-डीज़ल का दाम बढ़ाया है।
कहीं नेपाल ललकार रहा है हमें,
तो कहीं चीन घर में घुस आया है।
फिर भी है भरोसा मुझे तेरी ज़ात से आख़िर,
जो भी तूने चाहा है, होता तो वही आया है।।
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