एक हसरत जो बरसों से अधूरी है मेरी,
खुश-क़िस्मत से ऐसी भी क्या दूरी है मेरी।
गर ये शौक़ होता तो कब का मिट गया होता,
पर तुझे चाहना तो जैसे मजबूरी है मेरी।।-
मेरे हर राज़ में, एक राज़ छुपा होता है,
क्या लिखा है किस... read more
कहीं नेकी तो कहीं शराफ़त देखते हैं,
कहीं दिल में बसी मुहब्बत देखते हैं।
मेरे मुल्क के लोग अजीब हैं लेकिन,
यहाँ शादी के लिए हैसियत देखते हैं।
यूँ तो हम भी हुवे हैं शिकार ज़माने के,
लोग मगर उसी को फ़क़त देखते हैं।
सुना है जो भी होता है अच्छे के लिए,
चलो हम भी आज़मा कर क़िस्मत देखते हैं।
हमें खुद पे ही तरस आ जाता है मोनिस,
जब भी आईने में अपनी हालत देखते हैं।-
या खुदा! ये किस तरह का दौर आया है,
हर जानिब ख़तरा ही ख़तरा मंडराया है।
कहीं बिजलियाँ गिर रही हैं आवाम पर,
तो कहीं टिड्डियों ने हुड़दंग मचाया है।
कहीं भूकंप के झटकों से परेशाँ हैं लोग,
तो कहीं हमें तूफ़ान ने आज़माया है।
एक तरफ कमी है तिब्बी इंतिज़ामात की,
तो एक तरफ कोरोना का बढ़ता साया है।
माअशियत डूबती जा रही है मुसलसल,
और रुपिया भी मज़ीद लड़खड़ाया है।
कहीं रोज़गार ठप्प तो कहीं सरकार ने,
फिर पेट्रोल-डीज़ल का दाम बढ़ाया है।
कहीं नेपाल ललकार रहा है हमें,
तो कहीं चीन घर में घुस आया है।
फिर भी है भरोसा मुझे तेरी ज़ात से आख़िर,
जो भी तूने चाहा है, होता तो वही आया है।।-
आज भी तबीअत कुछ ना-साज़ सी लगती है,
ख़ामोशी में भी तेरी आवाज़ सी लगती है,
क़दम-ब-क़दम जो तेरे साथ चला था मैं,
के तू आज भी मुझे मेरी हमराज़ सी लगती है।-
जैसे राहगीर को रहबर की ज़रूरत होती है,
दिलदार को एक दिलबर की नज़र चाहिये,
मैं तो अखबार हूँ, बाज़ारों में बँट जाता हूँ,
मुझे क्या चाहिए, बस एक तेरी खबर चाहिये।-
तुम किसी मुहब्बत का असर क्या जानो,
मुहब्बत करने वालों की क़दर क्या जानो।
तुम्हें दिल जलाने से ही फ़ुरसत नहीं,
तुम दिल लगाने का हुनर क्या जानो।
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वो हमसे मिले हम उनसे, दिल का दिल से मुसाफ़ा हुआ,
धड़कन बढ़ी, चमक बढ़ी, न जाने क्या-क्या इज़ाफ़ा हुआ।-
यूँ अपनी बुलंदियों पे तुम, नाज़ ना इतना करो,
डाल ऊँची जितनी होती है, कमज़ोर उतनी होती है।— % &-
वो जब छोड़के मुझको, याद मुझे तड़पाने आये,
तब जाकर के होश मेरे, ठिकाने आये।।-
पेड़ घना है, पत्ते कम,
है जाने कैसा, ये मौसम।
सिर पे तुम्हारा आँचल हो,
जब भी मेरा निकले दम।
फिर खंजर तुम लाये हो,
सूखे नहीं अभी पिछले ज़ख़्म।
अब हौसलों में जान नहीं,
अब तो बन जाओ मेरे महरम।
तेरे ख़याल जब आने लगे,
तब जाके आया हाथ क़लम।
'मोनिस' अब तो होश में आजा,
वो हो गयी रुख़्सत, किस्सा ख़त्म।-