माना इस ज़माने में रंग बदलते है लोग मगर धीरे धीरे
एक तेरे रंग बदलने की रफ्तार से तो,गिरगिट भी परेशान है-
अब गिरगिट नहीं दिखते कहीं क्युकी उन का काम अब खत्म हो गया है
वो क्या है ना गिरगिट से ज्यादा रंग तो अब इंसान बदलने लगे है-
लम्हें भी कुछ ऐसे रंग बदलते है
एक पल मे ढेरो खुशियाँ तो
दूसरे में गमों को भर देते है।।
कभी कुछ यादों और कभी सपनों
के संग इस जिन्दगी को टटोलते है
कभी बेजान तो कभी हसीन सी
नींदें हम सो लेते है
लम्हों के बदलते रंगों में हम खुद भी खो लेते है
और गर जो ना आये कभी ख़ुशी
गमों की बेरंग चादर ओढ़ लेते...
ये लम्हें भी जाने कैसे कैसे रंग बदलते है
हर रंगोँ के साथ कुछ अनकहे लफ्ज़ जरूर छोड़ देते है
हाँ ये लम्हे रंग बदलते है!!
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होली के रंग तो फिर भी धुल जाएंगे
पर रोज़रोज़ ये रंग बदलते चहरों को
कैसे पहेचान पाएंगे।
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सभी चेहरे हसीन दिखते, बेहद यहां,
खैर मुखौटे वाले का घर भी,चल रहा।
वो एक हाथ से दिल में दस्तक देते रहे,
दूजे हाथ अब अपना हिसाब मांग, रहे।
अजीज बनकर सच से बेखबर से होते,
लगता है अब नया अखबार बन गए वो।
मेरे जख्म देख मुझे ढाढ़स बता रहे है,
अपनी वो पसीने की बूँदें गिने जा रहे है।
मेरे अरमानों का तो अब गला घोट कर,
फिर अपने ख्वाबो की मंजिल बना, रहे।
उन्हें सुनाएं हम अब अपना हाल ए बयां,
जो मेरे ही जख्मों के कातिल बने बैठे हैं।
कौन नीम और शहद का चढा सा यहां,
मेरा दिल खुद उनकी, वकालत कर रहा,
-DEEP THINKER-
ये रिश्तों का बाजार है साहिब
यहां दिल और जुबान के सच्चे लोगों की कद्र नही...-
जानें वो हर घड़ी कितनें ही रँग बदलता है
वो शख्स हर बार नये नक़ाब में मिलता है-
सच बता तू ज़िन्दगी है या गिरगिट हैं,
हर पल में कितने रंग बदलती हैं....!-
और कमाल तो देखो
उस काफिर का..........
वो सबका हुआ एक मेरा छोड़ कर।।-
जिन लोगो पे करते है हम भरोसा आँख मूंध कर अक़्सर वहीं लोग हमें धोखे से रूबरू कराते हैं।
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