*"मन की बातें"*
मन के भीतर पद्म सरोवर
मन में लाक्ष भवन भी।
मन में सूखे शांत मरूस्थल,
मन ही वृंदावन भी।
मन जब तेज गति से भागे,
पीछे रहे पवन भी।
मन कल्पन को शब्द मिले तो,
कण कण लीखे कवन भी।
तस्वीरें क्या सच कहती है?
भीतर भरे भरम भी,
मन दर्पण में बिंबित होता,
एक दूजे का मन भी।
मन की बातें मन ही जाने,
या फिर कहे नयन भी।
*- रूपल संघवी 'ऋजु' जामनगर*
*दिनांक, २२/९/२०२५ - सोमवार*
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*"હું!"*
અજાણ ખુદથી ને જાણું સઘળું, ખબર છતાંયે ખબર નથી.
હું આયનામાં મળું છું મુજથી, અવર છતાંયે ખબર નથી.
વિચાર મનના ફરે છે પળ પળ, તરંગ ઊઠે જુદા જુદા,
ને કાંકરી મનને ડગમગાવે, વમળ છતાંયે ખબર નથી.
ભણી ગણીને બધાંય શાસ્ત્રો, હું ગર્વથી વદતો વાદી થઈ,
હું તન છું, મન છું, કે જીવ, કે શિવ? ઉત્તર છતાંયે ખબર નથી,
છે સત્ય અંતિમ જવાનું અહીંથી છતાંય રહેતો હું બેફિકર,
મેં મંચ પર મારું પાત્ર ભજવ્યું અમર છતાંયે ખબર નથી.
તને જ શોધું બધી દિશામાં ન ઝાંખી જોયું ભીતર કદી,
તું માર્ગદર્શક હતો જ આગળ સગડ છતાંયે ખબર નથી.
*- રૂપલ સંઘવી 'ઋજુ' (જામનગર)*
*તા. ૩૦/૬/૨૦૨૫ - સોમવાર*-
Tumhare pas na hone par bhi,
Tumhare sath hone ka ahesas hai,
Yah samndr ki laheron me,
tumhara pratibinb!
Jisame zalkta apaar prem!
Man ko shanti or tripti deta he.-
नव विचार को धारण करना
सब के बस की बात नहीं।
रूढ़िओं का मारण करना
सब के बस की बात नहीं।
आज बदलता है यह नवयुग,
सवाल समानता का हो जब,
नारी है नर से आगे अब,
अभिमान का वारण करना,
सब के बस की बात नहीं।
अस्तित्व की खोज है जारी
अब नारी है नर पर भारी,
बेटी बचाओ नारे यह सारे,
बेटों का उद्धारण करना,
सब के बस की बात नहीं।
- रूपल संघवी 'ऋजु' (जामनगर)
दिनांक, २६/२/२०२५ - बुधवार
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घड़ी घूरती है टॉवर की।
ये कैसा है शहर सोचती,
शोर शराबा भागा दौड़ी
पल पल खाए उम्र नोंचती,
घड़ी घूरती है टॉवर की।
रात दिन बस टिक टिक करती,
सालों से है एक जगह पर,
ना झगड़ा ना खिटपिट करती,
घड़ी घूरती है टॉवर की।
समय, जीवन ओर बहता पानी,
सांसे जैसे घड़ी पुरानी,
ठाठ हे जब तक घड़ी है चलती,
घड़ी घूरती है टॉवर की।
- रूपल संघवी 'ऋजु'
दिनांक. २१/२/२०२५ - शुक्रवार-
चाँद को पूछा कि क्या मेरे बनोगे तुम?
उसने इतराते कहा क्या दे सकोगे तुम?
प्रेम से क्या दूर तक नाता तुम्हारा है?
दाग जो चहरे पर मेरे सह सकोगे तुम?-