सितारों की जमघट
हॉकी के मैदान में
ओड़िशा हुआ गर्वित-
खेल रहा हूँ शब्दों से
इस फोन रूपी मैदान में।
ये बहुमंजिला इमारतें
निगल गयी मैदान हमारा।-
आज बेरोजगारी के आलम में भरा मैदान देखा है।
लग के लाइनों में सुबह को शाम देखा है।
फिर भी जॉब न मिली भैया ये देश का हाल देखा है
एक पीछे हजार ऐसा बेरोजगारी का बँटाधर देखा है।-
कभी प्रेमी बदल गये
कभी प्रेम बदल गया
हम जब मैदान में उतरे
पूरा गेम बदल गया-
तू शाहीन ए इकबाल है इंक़लाब पैदा कर,
जो ढाह दे कुफ्र के पहाड़ों को कुब्बत ए परवाज़ पैदा कर,
कलम भी तू, शमशीर भी तू, साहिब-ए-किताब भी तू,
पिघला दे आफताब कल्ब की तपिश, गर वो ईमान पैदा कर।-
दर्द ने एलान कर दी जंग, दिखा दी इश्क़ का खंजर
मोहब्बत की मैदान में पड़ा है दर्द हजार हजार...
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अगर तुम लौट आओ.. मेरे बचपन
तो शायद
खेल मैदानों में हों,
दिल-ओ-दिमाग में नहीं।-
इन हसीन वादियों से पूछो खूबसूरती क्या है।
इस खुले मैदान से पूछो ठराव क्या है।।
इन हवा की लहरों से पूछो सादगी क्या है।
इस उगते सूर्य से पूछो तप कर चमकना क्या है।।
(धामा आशीष)-
उतरें हैं मैदान में तो आगे तक जाएँगे
जीत के अम्बर पर अब सर झुका के आएँगे-