मिथिला हक़
सीता माता जेतय के बेटी, विद्यापति के अछि जे धरती
बायढ़ सँ मारल रहल हमेशा, रहल अकाल स परती।
सरकार नेता के कुनो मतलब नै, बैन क बैसल मूर्ति
बोल नै मुंह में पान भरल, नै देखैत नाक में सुर्ती।।
मिथिला में दुर्लभ देखूं आयओ पानी, बिजली, शिक्षा
काज धंधा के कुनो पता नै, ने स्वस्थ्य के कुनो रक्षा।
सब सुख सुविधा हमरो भेंटा, मोन में रहल इक्षा
अंधकार में जीवन आयओ, प्रगतिक अछि प्रतिक्षा।।
पेट में अन्न के दाना नै, आ देह पर नै अछि अंगा
भारत माँ के हमू संतान हमरो सपना सतरंगा।।
पोखर माछ मखान ह्रदय में, वाणी में मोधक गंगा
ठोड़ पर मिथिला मैथिल हक़, मोन में अछि तिरंगा।।
अप्पन हक़ के बात करै छी, हम नै छी भिखमंगा
आब बर्दास किनो नै करब, कूनो व्यवहार दूरंगा।
मैथिल हित के बात नै करता, हुनका देबैन ठेंगा
मिथिला के जे माथ पर रखता, नबका धोती रंगा।
पोखर माछ मखान ह्रदय में, वाणी में मोधक गंगा
ठोड़ पर मिथिला मैथिल हक़, मोन में अछि तिरंगा।-
मधुबनी हमर जान
मधुबनी हमर पहचान यउ
अतै के पान मखान शान यउ
मिथिला पेंटिंग पूरा विश्व विखयात यउ
मधुबनी हमर मातृभूमि
मधुबनी हमर जान यउ-
मिथिला हमर अछि जन्मभूमि,
मैथिली हमर मातृभाषा अछि।
सदिखन मिथिला मैथिल आगु बढ़े,
यैह हमर अभिलाषा अछि।-
★प्रीतम क लेल पत्र★📃💌
निश्छल हमर प्रेम छल मुदा नै भेल अहाँक कहियो भान यौ,
करेजक तह स हम प्रेम केलौ जे आबै अहाँक अधर पर मुस्कान यौ,
प्रेम म परि कतेक स्वप्न देखलौं,आ भेल की परिणाम यौ,
पाँच वर्षक बालिका सन चहकै छलौं,केलक विरह परिपक्वता प्रदान यौ,
आन पर विश्वास क एहन ठकेलौ की आब अपनों पर भरोसा करै सँ डेराइत अछि प्राण यौ,
नीरस भ गेल जीवन हमर,नहि रही गेल आब कुनो अरमान यौ,
स्मृति मात्र शेष रहल अहाँक संगक,सदिखन घुटैत अछि जान यौ,
मुदा अहाँक धन्यवाद करबा सँ जुनि हम चुकब,करेलौं अहाँ हमरा जिनगी क अध्याय स पहचान यौ!!-
कतय हेरायल ढेंगा-पानी आ कतय चोरा-नुकी क खेल,
कतय गेल ओ धप्पा-धुप्पी आ कतय हेरायल पोसम्पा क रेल,
कबड्डीयो नै खेलै आब बच्चा,इ कोन कलजुग भेल,
फोने म खेल ताकी लेलक ,छूटल नेना-भुटका क सँझुका मेल,
कतय चली गेल माटिक चूल्हा परहक भोजन-भात,
ओय भोज्य क वर्णन की करब,अहा!गजबे होय छल स्वाद,
चिनबारक चूल्हा-चेकी बिला गेल,भेल गैस-सिलिंडरक साथ,
विलुप्त भ गेल सबटा संस्कृति,उफ! कतेक नमहर छैक आधुनिकताक हाथ,
डहि गेल सबटा खर क घर,बदैल गेल देहातक हालात,
बड़का-बड़का इमारत बनि गेल,बढ़ि गेल सबहक आब बिसात,
नै जैत अइछ आब कियो कलम-गाछी,नै रहल ओ पहुलका बात,
बूढ़-पुराण सँ लय बच्चा-बुदरुक सब अपने मँ मग्न रहै छैथ,केने रहै छैथ सब क कात,
कोनाक नेनाक हड्डी मजगूत हेतै,जँ नै वो अपन मैट पर लोड़ीयैत,
नून-रोटी क जगह पिज़्ज़ा-बर्गर ल लेलकै,स्वास्थ्य पर होयत अछि वज्रनिपात,
कंसारक चूड़ा-मुरही निपत्ता भेल,फास्ट-फूड लगौने अछि सब पर घात,
खेती-पातीं चौपट भ गेल,बदैल गेल सबटा हालात,
शहर बनेता गांव क सब मिल,नै जानी की छैन ग्रामीणक जज्बात,
शहर बनबैक सपना त नहिये पुरतैन,धोता गाम सँ सेहो हाथ!!-
Nai Puchu Monak Baat,
Hum Aaiyo Aahi Sa Pream Karai Chi...
Chi Hum Bahut Dur Aaha Sa,
Taiyo Aahi Humesa Mon Parai Chi...-
सुनूं करेज़ा,
कहूं कता छी आबि लग हाथ पकड़ी,
लग आइब, भोरक चाय पर बात छेड़ी।
अतबे कहूं हम छी ने आहान अागु त बढ़ू,
सब ठीक रहतैक आहान प्रयास त करू।
अहि तरहक निस्वार्थ प्रेमक कामना करैत छी,
आहान के इंतज़ार में नयन पसारी बाट जोहई छी।
कहियो त ई कल्पना स हटीं, सॉच हेतई,
पिया मिलन के आस जल्दी ही, साकार हेतई।
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मिथिला मेरी जन्मभूमि
मैथिली मेरी मातृभाषा
लिपि अपनी इसकी
देती इसकी संस्कृति की परिभाषा
बनी रहे इसकी अस्मिता
गाते रहे गीत विद्यापति के
यही मेरी अभिलाषा....
अनुपमा झा
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