Rupam Jha   (Rupam Jha (_Navrup_))
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हिन्दू तन–मन, हिन्दू जीवन, रग–रग हिन्दू मेरा परिचय!
🎂 31 August
📱Instagram : _navrup_
Joined 4 December 2017


हिन्दू तन–मन, हिन्दू जीवन, रग–रग हिन्दू मेरा परिचय!
🎂 31 August
📱Instagram : _navrup_
Joined 4 December 2017
2 DEC 2024 AT 20:06

जिंदगी का ताना - बाना

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6 FEB 2024 AT 20:58

मन की मेरी विकलता का अब हल मिले,
जिंदगी में सरलता को अब बल मिले।
यों तो तोड़े हैं अपने सपने कई,
पर जो संजोए हैं उनका तो अब फल मिले।

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2 JUN 2023 AT 14:21

चित्र संगम का ना हम बना पाएंगे,
द्वार दीपक खुशी से ना जला पाएंगे ।
पास दिल के तुम्हारे तो हैं हम बहुत,
पर इस दिल में ना घर हम बना पाएंगे ।।

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30 JUN 2022 AT 21:52

प्लेटफार्म होता है यात्रा का महज एक पड़ाव......!
और हर प्लेटफार्म को गंतव्य समझना है बड़ी भूल,
जीवन के रेलगाड़ी में कई डब्बे होते हैं ख्वाब के,
और रास्ते का पता होना बनाता है हर यात्रा को सुगम,
पर जीवन की यात्रा?
वो तो दौड़ती रहती है अनजान पटरियों पर ,
अनवरत, अपने अज्ञात गंतव्य के लिए ...
और जोड़ती रहती है कई डब्बे अलग अलग रंग के ..!

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16 JUN 2022 AT 16:43

स्मृतियों के झंझावतों से जब जब मन सम्मुख हुआ,
कुछ बोझिल यादों के बादल यूं सहसा ही घेर लिया |
आत्मचिंतन - मनन से बस पछतावा ही हाथ लगा,
जाने किस अगम्य तृष्णा में मन हरदम ये पथिक रहा ||

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8 FEB 2022 AT 0:43

मन की मेरी मनः स्थितियां जानोगे क्या?
दिल की सारी भाव भंगिमाएं पहचानोगे क्या?
जो कह दूं कि इन सांसों के क्रम में धड़कते हो तुम..!
जिंदगी भर के लिए मेरा हाथ थामोगे क्या?

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16 JUL 2021 AT 16:01

मेरे सपनों के तहखाने में
आती है एक बुढ़िया,
झकझोरती है,
जगाती है मुझे,
मेरे तपते जज्बातों की भट्टी पर
बनाती है खूब सारे लजीज व्यंजन,
पड़ोसती है थाली मेरे लिए,
और फिर सामने से खींच लेती है !

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7 APR 2020 AT 15:04

दुनिया सिमटी है घर के अंदर,ये वायरस कितना दुखदायी है।
भयभीत बैठा हर मानव जेहन,कैसी ये विपदा आयी है।
विश्व व्याप्त इस महामारी का भयावहता सर्वविदित है,
पर कुछ लोग न बाज आ रहे,जिनकी सोच सीमित है।
ज्ञात है इस विकराल बीमारी का कोई उपचार नहीं है,
एकाकीपन अपना लो मानव,एकमात्र बचाव यही है।
अगर प्यार है अपने राष्ट्र से,मानवता से और प्रियजन से।
कुछ दिन रोकिये भाव को अपने,न गढ़िए स्वप्न मिलन के।
एक जन की लापरवाही,समूचे जनमानस को तबाह कर सकती है,
हमारे भारत की दशा भी चीन-अमरीका-इटली सी हो सकती है।
समय रहते ही क्यों न लें हम प्रण कि अपने देश को बचाएंगे,
इस मुश्किल क्षण को घर में रह अपने परिवार के संग बिताएंगे।
धोएंगे अपने हाथों को बारम्बार,ना किसी से हाथ मिलाएंगे।
करते है छोटी सी त्याग,घर से बाहर कुछ दिनों के बाद जाएंगे।
इस प्रकृति पर न हक़ है अपना,ये बात खुद को समझाते हैं,
पशु-पंछी पौधों-पेड़ों को भी थोड़ा उनका हक लौटाते हैं।
सोचो उन गरीबों का जो दो जून रोटी को तरसते हैं,
अगर ग्राह्य बन गए कोरोना का तो बच नहीं सकते हैं।
गर डॉक्टर,पुलिस व स्वच्छताकर्मी का हम सहयोग करेंगे,
विश्वास है हम सब इस मुश्किल क्षण से जल्दी ही उबरेंगे।
हर मानव इस वैश्विक महामारी से लड़ने को योद्धा बन सकते हैं।
सिर्फ घर बैठ कुछ नहीं कर,हम बहुत कुछ कर सकते हैं।

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28 AUG 2019 AT 20:37

किसे दिखाती जो घाव मिले थे,
फ़ुरसत में तब कोई नहीं था,
किसे बताती जो भाव भरे थे,
इत्मीनान से सुनने वाला कोई नहीं था,
उन घावों को भर पाना,जाने क्यूं इतना मुश्किल था,
उन भावों से भरा मन उसका,जाने क्यूं इतना बोझिल था,
तब उस पीड़ा से उबड़ने को दिन रात वो आहें भरती थी,
चैन नहीं था एकपल को हरपल वो बैचैन सी रहती थी,
एक राह दिखा था उसको,कब कैसे वो उसपे चलने लगी,
जख्मों को कुछ शब्द दे दी,नज़्म कुछ वो बुनने लगी,
पर उन नज्मों ने तब जाकर आकार लिया,
जब उसको Your quote जैसा एक अमूल्य परिवार मिला!

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16 AUG 2019 AT 23:09

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