सादगी से परोसती है वो जज़्बात खरे खरे,
जैसे शब्दों की महफ़िल हो और मेहमाननवाज़ी वो करे-
हर गम हर दर्द को झुककर सलाम करता हू।
सुना हु दस्तक-ए-मेहमान को ठुकराया नही जाता।-
तेरे प्यार से कुछ तो खास हुआ हमारे मेहमान-नवाजी में
उदासी आई, वो रुक गई, ग़म भी आया वो भी रुक गया-
अता-ए-इज़्ज़त के सिलसिले
क़ायम हैं दोस्त....
कहा जाता है
किसी की आमद पर अब भी
"चाय तो पीते जाइये"-
माना कि तेरे दर पे हम
ख़ुद चलकर आए थे ऐ इश्क़
लेकिन दर्द दर्द और बस दर्द
ये कहां की मेहमान नवाजी है !!-
यूं कुछ खास तो नहीं हम,
पर जासबातों की कद्र जानते हैं,
रुखसत कर दिया था दरवाज़े से तूने हमें मगर,
हम मेहमान नवाज़ी का उसूल जानते हैं!-
ज़रासी भी हिकारत व रुसवाई..
हमको नहीं भाती,,
हमें घर न बुलाना अगर..
मेहमान-नवाज़ी नहीं आती,,-
आदाब-नमस्कार जैसे शब्दों से लग जाते हैं मेहमान नवाज़ी में चार चाँद
रागों से लबरेज़ शब्दों की बदौलत लग जाते हैं मेहफ़िल-ए-मौसिक़ी में चार चाँद
ये ही तो है कमाल शब्दों में बसी ख़ूबसूरती का मेरे अज़ीज़ दोस्तों
जो हौसला अफ़ज़ाई का गर शक़्ल अख़्तियार कर लें तो लग जाते हैं ज़िन्दगी में चार चाँद-