साफ शफ़्फाफ़ था पानी मैं बरसात का,
..नफरत की गटर में आज बह रहा हूँ,,
देशवासी हूँ क़ाबिले-एहतराम लेकिन,
..बदतमीज़ियाँ सियासत की सह रहा हूँ,,-
चलती फिरती लाशों को देखना हो अगर..
जिस्म के बाज़ारों पे ड़ालो एक नज़र..-
कुछ लोग हमसे ..
मिलना नहीं चाहते,,
क्योंकि हर किसीसे ..
हम हाथ नहीं मिलाते,,-
कुछ लोगों को हम ..
इसलिए नहीं भाते,,
कि बुरे लोगों से हम ..
हाथ नहीं मिलाते,,-
चौड़ा सीना तेरा..गंदी नफरत से सड़ा हुआ है,,
सब जानते हैं ऐ ज़ालिम, तू कैसे बड़ा हुआ है,,-
मैं भुल जाऊँगा तुम्हें वादा है लेकिन,
तुम मेरे दिल से ... निकलो तो सही,,-
हर सरकारी योजना की
असफलता के बावजूद
नेता गर्व से यहां उछलता है,,
और देशों में ऐसा होता तो..
नेता मांगते माफी,लेकिन..
इस देश में सब चलता है,,-
बदनिगाही के गुनाह से बचूँ ..
अपनी तो यही ख़्वाहिश रही,,
पर क्या करें उनकी बेपर्दगी ..
बहोत बड़ी एक आज़माईश रही,,-
हर जंग को जीतनेवाले ..
हम दिलवाले होंगे,,
नफरत करनेवालों के ..
देखना मुँह काले होंगे,,-
आजकल कुछ नेता
जब भाषण देते हैं
तब ऐसा लगता है जैसे..
चौराहे पर खड़ा कोई जाहील
कमल छाप मंजन बेच रहा है.-