हाय, न बूढ़ा मुझे कहो तुम!
शब्दकोश में प्रिये, और भी
बहुत गालियां मिल जाएंगी
जो चाहे सो कहो, मगर तुम
मेरी उमर की डोर गहो तुम!
हाय, न बूढ़ा मुझे कहो तुम!
वर्ष हजारों हुए राम के , अब तक शेव नहीं आई है!
कृष्णचंद्र की किसी मूर्ति में, तुमने मूंछ कहीं पाई है?
वर्ष चौहत्तर के होकर भी, नेहरू कल तक तने हुए थे,
साठ साल के लालबहादुर, देखा गुटका बने हुए थे।
मैं तो इन सबसे छोटा हूँ, क्यों मुझको बूढ़ा बतलातीं?
तुम करतीं परिहास, मगर मेरी छाती तो बैठी जाती।-
पत्थर है तो शर्म क्यों
ऊंची रखना मूंछ।
तू इतना कमजोर क्यों
ये शीशे से पूछ।।
😊दूसरा पहलू😊
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न जाने ये कैसी रवायत हो गई है
मूंछें हिन्दू दाढ़ी मुस्लमां हो गई है
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जायज़-नाजायज़
किसी तरह का
कोई रिश्ता नहीं होता,
दाढ़ी-मूंछ
और
अक़्ल के बीच।-
क्या मूंछें हैं जनाब,
इनकी लटै हैं लच्छेदार।
देखकर इनका मिजाज,
शरमा जाए सरदार।
आधी काली आधी सफेद,
मगर दिखती चमकदार।
गलती से हो जाए इनकी मसाज,
खुल जाएं इनके भाग।
करती रहती है ये इंतजार,
कब लगाए मेरा मालिक इनमें हाथ।
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मूंछ रखना कोई बड़ी बात नहीं,
मूंछ तो कोई भी रख ले,
लेकिन
जो निभाए इन मूंछों को,
रखें उनका मान,
वही सच्चा राजपूत कहलाए....-
जब असली मूंछें उग आती हैं चेहरे पर ,,
तब ही बचपन की दूध के गिलास से बनती थी जो,,
उन मूंछों की कद्र पता लगती है..!!-
मुंह पर मूंछ,
क्षत्रियों के स्वाभिमान की ये निशानी है ।
देकर मूंछों ताव, आगे बढ़ जाएं
प्रदर्शित इससे होता, कभी न डरने की ठानी है ।।-
जंगल की शोभा झाड़ी से,
माता की शोभा साड़ी से,
रोगी की शोभा नाड़ी से,
मर्द मूंछ और दाढ़ी से।।-