मुझे शिकायत नही व्यक्ति विशेष से
वो भी बंधा है किस्मत की लकीरों से
शिकायत है मुझे अपनी हाथों की लकीरों से
चाहा जिसे वही फिसल गया मुट्ठी की रेत सा-
मुट्ठी भर रेत लेकर , उसमें नमी ढूंढ़ते हैं.,
अजीब लोग हैं, आसमां पे जमीं ढूंढ़ते हैं..
ये फ़लक, मुबारक हो , इन फरिश्तों को.,
हम सिर्फ, अपने हिस्से की जमीं ढूंढ़ते हैं..
यूं तलाशता हूं मैं तुम्हें, खल्वत में अक्सर.,
जैसे पाँव, ऊँचाई पर जाके जमीं ढूंढ़ते है..
जिनका किरदार , पुलिंदा है खामियों का.,
वो लोग भी, मेरे किरदार में कमी ढूंढ़ते है..
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पछताए क्या होत है, जब चिड़िया चुग गयी खेत,
मुट्ठी में आवे नहीं, चाहे जितनी भर लो रेत..!-
मुट्ठी भर रेत लेकर, उसमें नमी ढूंढ़ते हैं.,
अजीब लोग हैं, आसमां पे जमीं ढूंढ़ते हैं..-
थोड़ी सी फुर्सत निकाल
आपनो से मिलने के लिए
वरना वक़्त का क्या यह तो निकल ही रहा है
मुट्टी से फिसलते रेत की तरह...-
एक नन्हा नादान बालक
मुट्ठी में रेत भरकर
भींच लेता मुट्ठी को
डर है उस मासूम को
कहीं फिसल न जाये
ये मुट्ठी भर रेत
फिर वो नन्हा नादान
खिलौनें कैसे बनायेगा
आज मेरे वक्त की दशा है ये
मैं जोरों से मुट्ठी भींचें हूँ
वक्त नीचे से खिसक रहा है
मैं दबा लेना चाहता हूँ
वो निकल जाना चाहता है
उसे रोककर मैं, खुद
एक लम्बी सांस लेना चाहता हूँ
कुछ वक्त, वक्त की गोद में
शाम होते देखना चाहता हूँ।
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दुनिया भी देखो मुट्ठी में खुशियाँ समेटती।
खुशियाँ फिसल जातीं मगर, मुट्ठी के रेत सी।।
अनुज 'अनहद'-