मुखालफत ना होती गर ख्वाबों की तासीरो से,
बांध देता तुम्हे भी अपने इश्क़ की जंजीरों से।-
मुखालफत हमहें थी, उनकी बेअदबी से
लेकिन मिले जब उनसे, तब आदाब अर्ज़ कर लिया।-
वो शोक़ सी नज़र सांवला सा एक लड़का
दिल ने कहा उससे मोहब्बत करनी है
चुपचाप सुनती हूं उसकी हर बात को
हर शाम अब उसकी रिआयत करनी है
लैंप के नीचे दबाके पेंसिल उंगलियों में
मुड़े- तुड़े कागजों में उसकी आयत लिखनी है
रंगीन यादों में तेरी तैरुं या डूब जाऊं
तेरे वश में हो जाऊं ऐसी सुखायत करनी है
देखी है मैंने तेरी मासूम सी वो बदमाशियां
फिर भी मुझसे पूछते हो शरारत करनी है
इन अरसों में बस एक लम्हे का झगड़ा था
मुझे भूलकर तुम्हें किसी और की खुशामद करनी है
मेरे साथ मेरे नहीं किसी और के बन कर रहे
तुमसे जानकर ये खुद से बगावत करनी है
महसूस करती रही कहीं तुझमें मैं खुद को
अब किसी से नहीं खुद से मोहब्बत करनी है
खत्म हो गए हैं किस्से अब तुझे हिकायत कहनी है
सुन ली मेरी कहानी तूने हिदायत करनी है
हिकारत तो न कर मुझसे ए मेरे खुदा!
माज़रत दे दे मुझे तेरी हिमायत करनी है
मुखालफत की थी मैंने अब कभी न करूंगी
रिवायतें न सुनकर तेरी कैफियत पूछनी है
ए खुदा!अब तुझी से शिकायत करनी है
रह गई है जो, पूरी तुझसे किफायत करनी है
नादानी जिंदगी में एक शदीद सजा मिली
खुद से नजर ना मिला पाए तेरी ज़ियारत करनी है
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माना इस मोहब्बत में तिजारत जेहानत नहीं होती,
और तिजारत की नीयत से की गई मोहब्बत में,
उसकी अपनी कोई इबारत नहीं होती,
वहीं जेहानत से की गई मोहब्बत में,
कभी किसी मुखालफत की कोई ज़रूरत नहीं होती,
पर क्या करें आज कल की इस मोहब्बत में,
कोई भी बात बिना मुखालफत नहीं होती,-
मैं खुलकर करूंगा तेरे ज़ुल्म की मुखालफत..
तू वक्त ए तख़्तनशी है मेरा खुदा तो नहीं !-
तुझे भी खौफ था तेरी मुखालफत करूँगा मै
और अब नहीं करूँगा तो गलत करूँगा मै
उसे कहो के अहद-ए-तर्क-ए-रस्मो-राह लिख के दे
कलाई काट के लहू से दस्तख़त करूँगा मै
~ तहज़ीब-
मुखालफत का वक़्त कहां मुकर्रर
करता है कोई,
के दिल टूटना यूं ही आम
थोड़ी हुआ।-
मुरीद हूँ तेरी आदतों का,
तभी मुझे तेरी मुखालफत
सुन्ना अच्छा नही लगता.....-
कल कई ख्वाब आंखों से बग़ावत कर बैठे,,
नींद भी रुसवा हुई रातों से मुखालफत कर बैठे-