एहसास ख़्वाबों का है कुछ इस क़दर,
माना भटक तो रहे ही हैं हम दर बदर,
इक एहसास साथ है, फ़िर क्यों हैं बेसब्र,
ज़िंदगी भी तो इक ख़्वाब है, जीयो बेफिक्र।-
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सुबह कुछ जल्दी हो जाती है मेरी,
दिन मगर हैं कि काटे नहीं कट रहे,
कामना है सोहबत हो वादियों की,
फ़िर सुबह क्या और दिन क्या!-
कब तक आखिर कब तक तुम्हें ताकते ही रहें,
तुम्हारी खूबसूरती ढलती नहीं, शाम की तरह,
इक हम हैं बेचैन कब शाम ढले तुम्हारे दीदार को,
फ़िर वही शाम है फ़िर तुम वहाँ और मैं बेबस-
कुछ मसले हैं, जो सुलझाने भी नहीं हैं,
कुछ इरादे हैं, जो मसले ही बनाने हैं,
कुछ वादे हैं, जो भूल जाने के, मसले हैं-
शक़, गुस्सा और न जानें क्या क्या,
सब प्यार का ही तो स्वरूप हैं,
कुछ जल्दी समझ जाते हैं कुछ देर से,
मगर समझना अंततः आप को ही है-
मेरे दिल को अपना मुस्तकिल पता न बना,
रहम करो थोड़ा मेरे इस दिल पर भी,
इन राहों से कौनसा पहली बार गुज़र रहा हूं,
बेरुखी! कौनसा पहली मर्तबा ये होना है-
मोहब्बत करने की उम्र में, शायरी लिख रहा हूँ,
तू कभी थी, किसी को पता नहीं, पर मशहूर तुझसे हो रहा हूँ-
यह तस्वीर जो मेरी आँखों के सामने अचानक आ जाती है,
शायद तुम्हारी ही है,
अब तुम पूछ सकती हो, " ऐसा कैसे कह सकते हो?"
ज़ाहिर सी बात है, तस्वीर में भी तुमने मुँह फ़ेर रखा है-
तन्हा बैठे हैं आज वो और हम,
नयी क्या बात है हमारे लिए,
हम पूछ भी लें मगर क्यूँ,
उन्होंने हमहीं से मुँह फ़ेर रखा है,
रुस्वाई की वज़ह में हम शामिल तो नहीं,
तन्हा बैठे हैं आज वो और हम,
नयी क्या बात है हमारे लिए-
तुम्हारे आगमन ने मुझे शरणार्थी बना दिया,
दूर तुम गई और मुझे, गुलाम बना दिया-