मेरी नींदें सूखे दरिया की तरह है
सो जाऊं तो बहने लगती है
उठूं तो रुक जाती है-
मेरी किस्मत भी ठीक है
मेरी लकीरें भी ठीक है
मेरे अपने भी ठीक है
मेरा प्रभु भी ठीक है
बस
एक मैं ही गलत हूं-
कुछ यादों को बस यूं संभाले रखा है
सिवाय आंसुओं के कुछ नहीं रखा है-
एक सच ऐसा भी
परायों से अपनेपन की उम्मीद की जा सकती है
अपनों को बदलते हुए मैंने देखा है
इंसाफी अदालतों में झूठ बिकते चले गए
सच को बिखरते हुए मैंने देखा है
सुबह से शाम तक सबको हंसाता है वो
अकेली रातों में बिलखते हुए मैंने देखा है
कड़कती धूप में इमारते खड़ी करता है वो
बारिश में उसका घर टपकते हुए मैंने देखा है
ये तकलीफें उसका कुछ नहीं बिगाड़ सकती
आसमां को उसके पैरों तले मैंने देखा है
बिके हुए चेहरों से परेशान था वो
टूट कर रोते हुए आइने को मैंने देखा है
हां पत्थर को सोने में बदलते हुए मैंने देखा है-
यदि हम किसी वस्तु या व्यक्ति से ,
किसी वस्तु या व्यक्ति की तुलना नहीं कर सकते
अथवा करना नहीं चाहते ,तो..
हम सही और ग़लत में अन्तर भी नहीं कर पायेगें-
शिद्दत से काटे है उम्मीदों के पंख सारे
उड़ने की कोई ख्वाहिश ही नही रही-
मैंने खुद को समर्पित कर दिया उसे
फिर भी वो मुझे पाना चाहे वो अलग बात है-
असम्भव इच्छाओं
और
काल्पनिक दुनिया
में मात्र
" सन्तुष्टि "
का अन्तर होता है-