सियाराम मिलन
(Read in caption)-
तुम सवाल उठा रहे हो नाम सिया राम पर
या मन बहला रहे हो अपने अधूरे ज्ञान पर।-
आज सितारों सी चमकेगी, फिर से अयोध्या नगरिया,
आन पधारो मोरे प्रभु, रस्ता देखें तोहरी यह गुजरिया।
सालो बाद हमरी प्राथना स्वीकार हुई है,
लाखो कोशिशें माना पहले बेकार हुई है।
हमरी भूल क्षमा करो हे कृपानिधान,
आज नगरी सारी फिर अश्रुधार हुई है।
आन बसो अब प्रतिक्षा ना होवे,
कब तुम ही कहो, तुम्हरे बिन सोहे है केसरिया।
आज सितारों सी चमकेगी..............
भव्य मंदिर, सुंदर प्रांगण हम बना भी देंगे,
महकती रजनीगंधा से हरशु उसे सजा भी देंगे।
पर वो पूर्ण तब होगा, जब तेरी छवि झलकेगी,
हम कोतूक से हाथ जोड़े तेरी वंदना भी करेंगे।
मन अधीर हो चला है, सुनलो गुहार अब,
बुला रही व्याकुल सी तुमको, पुरानी तुम्हरी डगरिया।
आज सितारों सी चमकेगी...................
निष्प्राण था जो, उसने भी प्राण है पाया,
जब भी दिल से, उसने तेरा ध्यान लगाया।
मन हर्षित है, अंतर्मन के दिए प्रज्वलित है,
फिर प्रभु मेरा लौट अपने देखो धाम आया।
अब आए हो तो अब छोड़ ना जाना,
बड़ी मुश्किलों से छटी है यह कारी बदरिया।
आज सितारों सी चमकेगी…..................
फिर से चलो, सब मिलकर दीवाली मनाएं,
इक वनवास से फिर हमरे प्रभु राम लौट आए।
फिर से शंखनाद की गूंज से संसार जगा दो,
फिर से रामराज्य के, चलो मधुर स्वपन सजाएं।
एक भी घर में अंधकार ना हो, उजाले भर दो,
देखूं तुझको, ऐसा दे दीजो मोहे देखन का नजरिया।
आज सितारों सी चमकेगी......................-
हर नगरी अयोध्या,हर जन में राम,
हर घर बन जाए, सुंदर पावन धाम।
हर हृदय पल्लवित हो, सत्कर्म की कामना,
विलुप्त हो मन,कर्म से, ईर्ष्या-द्वेष की भावना,
मर्यादा का पथ चुने
फिर क्यूं सोचे अंजाम,
निर्भय हो हम कर्मठ बने
और परिणाम बने श्री राम।
प्रतिमा नहीं प्रतिमान हैं, श्रेष्ठता का अधिमान हैं वो,
श्वास-श्वास में समाएं हैं,हर मानव का अभिमान हैं वो,
सुकून बन रगो में बहे
ऐसा है श्रीराम का नाम,
अवर्णनीय महानता उनकी
भज मन मेरे श्रीराम का नाम।
.............निशि..🍁🍁
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राम तत्व
जानकी के प्रेम में जो मृत्यु को ललकार दे
लोक जन में प्रेम में जो प्रेम को भी वार दे
...
सब के भीतर तत्व बसा अंश है वो विशेष है
अपने अपने राम ढूढों राम का संदेश है
पूरी कविता का वीडियो इंस्टा id पर है कभी समय हो तो देखिए बहोत प्यारी कविता है-
नौमी तिथि मधु मास पुनीता। सुकल पच्छ अभिजित हरिप्रीता॥
मध्यदिवस अति सीत न घामा। पावन काल लोक बिश्रामा।।
"गोस्वामी तुलसीदास"
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फिर इस दुनिया को संकटों से बचाना होगा,
मर्यादा पुरुषोत्तम राम तुम्हें वापस आना होगा।-
तेरे जीवन ने ही मुझको मेरा
मार्ग प्रशस्त कर दिखालाया है
हर विपत्ति मेरी अदृश्य हो गई
जब राम नाम होठों पर आया है
मेरी मर्यादा और कर्तव्य का
तूने ही प्रयोजन दिखलाया है
आजीवन तेरे पदचिन्हों में चलूं
ऐसा खुद से संकल्प करवाया है
जीवन आहुति दे कर मुझको
बस तुझ में ही मिल जाना है
जितना जलता हूं मैं तेरे विरह में
उतना पावक भी नहीं जल पाया है
दे आशीष मुझको मेरे श्री राम
तुझसा ही दुष्टों का संहार करूं
कर्तव्य की कैसी भी परीक्षा हो
स्वधर्म दायित्व हर बार करूं
विश्व भले सच लगता हो सबको
मिट्टी लगे मुझे यह सब संसार
मेरे लिए बस तुम ही सत्य हो
बाकी सब बस छल है छाया है-
मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम का वनवास कलियुग में आज भी जारी है,
शहंशाहों के महल दोमहलों पर महज तिरपाल की सियासत भारी है।
प्रीति-