Naveen Godiyal   (नवीन गोदियाल)
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Joined 19 April 2020


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Joined 19 April 2020
27 JUL 2023 AT 22:14

हमें दर्द के सिवा भी बहुत कुछ मिला था इश्क में,
ये बात और है, हमने दर्द को दिल से लगा लिया।

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22 FEB 2023 AT 21:15

मुश्किलों पे आग लगानी है,
चिंगारियों ने ठान ली तो ठान ली।
हर कठिन चुनौती बचकानी है,
तैयारियों ने ठान ली तो ठान ली।

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17 FEB 2023 AT 19:54

sometimes changing pace becomes vital for your sustenance

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9 NOV 2022 AT 21:42

मुझसे मिलकर भी हद में रहती है वो।
फिर कैसे मान लूं उसे इश्क बेइंतहां है।

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5 NOV 2022 AT 0:37

मेरे बारे में इतना सोच कर तुम परेशान न हो।
तकदीर लिखने वाले ने मेरे बारे में कुछ सोचा ही नहीं।
कुछ आढ़ी तिरछी सी रेखाएं खींच दी और कहा,
जी लेना गर इन ठुकराए रास्तों में जी सको तो।

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30 SEP 2022 AT 22:23

मुझे पूजा मत दो की तुम इस काबिल नहीं।
मैं तो साफ मन का हूं मैं कोई कातिल नहीं।
वो भी तुम में से ही था, ध्याता था मुझको।
बेटियों को पूज कर घर बुलाता था मुझको।
क्या नहीं दिया हर सुख से मालामाल किया।
मेरी ही पुत्री का फिर कैसा उसने हाल किया।
क्यों ढकोसलों में फिर मुझको खींच लाते हो।
मेरी प्रतिमा के आगे झूठा शीश झुकाते हो।
मैं पत्थर इसलिए की तुमने मान नहीं माना।
मन के दर्पण में नारी का सम्मान नहीं माना।
पाप, हवस, क्रूरता से व्यभिचार तुमने पाले है।
अपने भी डसते उसको सांप आस्तीन वाले हैं।
तू शरीफ है तो बता क्या आग लगा सकता है।
बेटी की खोई इज्जत वापिस दिला सकता है।
गर नहीं कर सकता तो फिर तू भी तो दोषी है।
चुप रहने वाला भी तो कातिलों का हितैषी है।
पूजने आना हो तो मन क्रम वचन समान हो।
तुझे महाभारत के उन नियमों का ज्ञान हो।
जिसमे कान्हा बनके चीर बढ़ाया जाता है।
बन भीम जरासंध को मार गिराया जाता है।
सुन गर संभव नहीं तो धरा छोड़ जाऊंगी।
लाख बुलावे भेजना बेटा तेरे घर न आऊंगी।
लाख बुलावे भेजना................😢

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17 SEP 2022 AT 8:25

दुनिया से लड़ने की अभी फुर्सत ही कहां।
अभी तो खुद से लड़कर खुद को तराशना है।

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11 SEP 2022 AT 17:27

पहल अकेले की थी फिर कोई हमनवा क्यों मांगे।
मालिक बिन मांगे देता है फिर बता दुआ क्यों मांगे।

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5 SEP 2022 AT 21:51

मेरे अच्छे और बुरे अनुभवों को भी शिक्षक दिवस की बधाई।

तुमने हर पल कुछ सिखाया है मुझे।
जो देख नहीं पाया वो दिखाया है मुझे।
जब अंहकार बढ़ने लगा चरम सीमा पे,
तूने घमंड की इमारतों से गिराया है मुझे।

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22 AUG 2022 AT 23:13

वो मेरा था,मुझसे दूर नहीं था।
अब्बा के उसके मंजूर नहीं था।
बड़े शौक से निकाला जनाजा इश्क का,
कौन कहता है कि वो मगरूर नहीं था।

मैं हिंदू वो मुस्लिम बस इतनी सी बात थी।
हम दोनो के दरमियां बस धर्म की जात थी।
हम अलग न होते तो कुछ और होना तय था,
इश्क और धर्म दोनो के लिए कयामत की रात थी।

उसकी निगाहों में, अपनो का मान था।
मेरी आंखों में उसके लिए सम्मान था।
कैसे देखता उसे फिर बेआबरू होते हुए,
पराया मान लिया उसे जो मेरी जान था।

मेरे दर्द भरे नगमे पढ़ पलके भिगोती है।
मैं हिंदुओं में तो वो मुस्लिमों में रोती है।
बस फर्क सिर्फ इतना है कि मैं तन्हा हूं।
और वो किसी के सीने से लग के सोती है।

इश्क़ को या रब्बा कोई आंखें लगवादे।
अपने ही धर्म में हो बस इतना सिखलादे।
कोई "नाज़" फिर जीने को मोहताज न हो।
कोई हंसते "नवीन" को अंधेरों में न डूबा दे।

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