Letter For U   (अनहद आकाश)
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Joined 25 October 2020


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19 NOV 2022 AT 21:58

रात! कर न कुछ बात कि फिर हलचल हो जाएगी।
तू तो खामोश रहेगी पर फिर हसरतें मचल जाएगी।

यादों का ये समंदर बड़ी मुश्किल से थोड़ा ठहरा है।
तेरी बातों से खामोश चीखों से फिर ये दहल जाएगी।

ख्वाब तो देखे थे मैने सुकून और खुशनुमा जिंदगी के।
फिर तेरी बातों से वो सब इक बार और जल जाएगी।

तुझ पर जो फिर मैं इक और बार ऐतबार कर भी लूं।
पता है मुझको ये कि तू फिर से यूं ही बदल जाएगी।

थोड़ा रुक समेट लूं मैं जिंदगी के टुकड़े एक बार तो।
पता है मुझे आंधियां तेरी फिर तिनके सी मसल जाएगी।

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19 NOV 2022 AT 2:50

जब तक रहेगी तुम साथ ख्वाब देखते रहेंगे
जब तक रहेगी ये रात ख्वाब देखते रहेंगे।

आंखो से ही कितना कुछ तुम कह देती हो।
न होगी जब तक बात ख्वाब देखते रहेंगे।

मौसम कितने आए और कितने ही चले गए।
सर्दी गर्मी या हो बरसात ख्वाब देखते रहेंगे।

उम्र के कितने पड़ाव बस देख कर गुज़र गए।
रहेगी जब तक आखिरी सांस ख्वाब देखते रहेंगे।

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18 NOV 2022 AT 1:40

क्या लिखूं तुम्हारे लिए, कि लफ्ज़ नहीं मिलते हैं।
तेरी खुशबू, तेरा खयाल, मेरी सांसों में पिघलते हैं।
तुझे खुद में रखूं ज़िंदा, तभी ये दम अब मैं भरता हूं।
वर्ना तेरे एहसास के साए हर वक्त मुझे निगलते हैं।

है मुझको खबर, नहीं तू है, फिर भी न जाने क्यों।
तेरी यादों के दीए, आज भी दिल में मेरे जलते हैं।

तू किसी और की है, अब न होगी कभी मेरी कभी।
इसी खयाल के पत्थर मुझे, हर रोज ही कुचलते हैं।

कुछ कर की सब छोड़ कर फिर बन जाओ मेरी तुम।
कुछ मुकरर नहीं होता यहां एक दिन सभी बदलते हैं।

तुम आ गई हो, और बन गई हो दुनिया मेरी फिर से।
ऐसे खयाल मेरे ज़हन में रह रह कर यूं ही टहलते हैं।

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6 DEC 2020 AT 20:38

ऐसी भी क्या है मजबूरी,
इतना किस बात का गुमान ही है
कल हो ना हो तुम किसको को खबर,
पर चिर सनातन ये हिन्दुस्तान ही है।
इन सर्द रातो में ज़रा सोचो
कैसे किसान वो रहता है
तुम ठंडे पानी की बौछार हो करते
पर सोचो वो इंसान ही है।
क्यों छीन रहे निवाला तुम इनका
क्यों हो गए हो यूं पाषाण हृदय
कुछ करुणा भाव दिखाओ इन पर
इस कठोरता में नुकसान ही है।
जो आज सड़कों तक पहुंचा है
ना जाने क्या रंग वो कल लेगा
किस क्रांति की किस इंकलाब की
ना जाने क्या वो शक्ल लेगा।
कुछ मज़ा नहीं जब अपना ही
भाई यूं तिल तिल मरता हो
ईश्वर का इस आशीर्वाद तुम समझो
जो तुम हमारे करता धरता हो।
इनकी खुशी में हम सबकी खुशी है
भले आपस मे हम अनजान ही है
खुशी बांट सको तो आज बांट लो तुम
आख़िर सबका मुकाम शमशान ही है।

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21 APR 2021 AT 13:35

तेरे जीवन ने ही मुझको मेरा
मार्ग प्रशस्त कर दिखालाया है
हर विपत्ति मेरी अदृश्य हो गई
जब राम नाम होठों पर आया है
मेरी मर्यादा और कर्तव्य का
तूने ही प्रयोजन दिखलाया है
आजीवन तेरे पदचिन्हों में चलूं
ऐसा खुद से संकल्प करवाया है
जीवन आहुति दे कर मुझको
बस तुझ में ही मिल जाना है
जितना जलता हूं मैं तेरे विरह में
उतना पावक भी नहीं जल पाया है
दे आशीष मुझको मेरे श्री राम
तुझसा ही दुष्टों का संहार करूं
कर्तव्य की कैसी भी परीक्षा हो
स्वधर्म दायित्व हर बार करूं
विश्व भले सच लगता हो सबको
मिट्टी लगे मुझे यह सब संसार
मेरे लिए बस तुम ही सत्य हो
बाकी सब बस छल है छाया है

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1 APR 2021 AT 3:11

खाली कागजों में कोई कुछ क्या लिख जाता है
किसी की मौत यहां कभी ये जां लिख जाता है
आहिस्ता से छूता एहसासों को और फिर देखो
मुर्दे में भी नई सासों के ये निशां लिख जाता है

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27 MAR 2021 AT 9:35

साथ में तन्हाई हो और हाथों में हो जाम,
इन सबसे भी कहां ही मिलता है आराम,
इन सबमें फिर कुछ तेरी याद कहती है,
और रात महकने लगती है।

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22 MAR 2021 AT 14:26

नाद हूं मैं ब्रह्म का , मिथ्या जगत माया से परे।
सार हूं परम सत्य का मैं,उस आत्मचेतन से उरे।
शब्द संज्ञा पाता तो कोई ईश्वर मुझको ही कहे।
जीवन, सृजन, प्रलय सब मुझमें स्वतः ही बहे।
मैं पूर्ण हूं मैं प्राण हूं जगत जीवन का प्रमाण हूं।
और अधिक क्या कहूं खुद के होने का संज्ञान हूं।
हूं अनादि अनंत मैं, जड़ भी हूं कभी, जीवंत मैं।
सत्य का मैं सत भी हूं, गुणों से भी गुणवंत हूं मैं।
सर्वत्र व्याप्त मैं बह रहा शब्दों में बस निहित न हूं।
जीवन में मरता तो कभी मृत्यु में मैं जीवित भी हूं।
रंगों में श्वेत कभी रक्त हूं, समग्र हूं और विरक्त हूं।
चलायमान जगत का हूं नहीं आरंभ से ही मुक्त हूं।
पृथ्वी हूं मैं आकाश हूं हर कण में में ही व्याप्त हूं।
मुझसे पूर्ण न होगा कुछ बस खुद से ही पर्याप्त हूं।
भूत कहे कोई भविष्य भी में अनादि हूं अक्रांत हूं।
सब ज्ञान का स्त्रोत मुझसे है मैं वेदों में मैं वेदांत हूं।

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22 MAR 2021 AT 13:42

मैने एक, कविता लिखी है। गम हैं उसमे खुशियां भी है।
लिखा है दूसरों के लिए पर। काफी उसमे अपना भी है।
थोड़ी हसीं ठिठोली है तो। कुछ आंसुओं से भी भीगी है।
मिलन की यादें हैं उसमें। और मूक विरह वेदना भी है।
दैनिक ऊहापोह है उसमें। अंतर्मन की निस्तब्धता भी है।
गाती गुनगुनाती है कभी। मर्म क्रंदन की संवेदना भी है।
पर्वत जंगल सी लगती है कभी नदिया की कलकल सी है।
कभी खग सी चंचल होती तो। शांत हो ये निश्चल भी है
शब्दों के ताने बाने हैं ये सब। भावनाओं के पुष्पों से गूंथे।
बेशक वक्त से कांटे है इनमे। पर इनसे जीवन महका भी है।

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19 MAR 2021 AT 6:37

कोई कुछ भी कहे वो है वहां जो सब सुनता है।
सोचते रह जाते तुम कुछ और ही वो बुनता है।
एक नज़र से, तेरा भीतर बाहर सब जानता है।
तेरे कर्मों के हिसाब से ही, तुमको वो चुनता है।

जमा करने की होड़ में लगे रहते हैं सब ही यहां।
न जानते की इस जगत की प्रकृति ही शून्यता है।
गुण अवगुण के विचारों से सब कर्म यहां करते हैं।
उसे क्या इससे, जिसका स्वभाव ही निर्गुणता है।

संवर्धन के ही साथ यहां, हर क्षण क्षय भी हो रहा है।
तुम जिसे सहेज रहे हो यहां, पल पल वो खो रहा है।
क्या ले जाओगे तुम, यहीं आखिर सब है रह जाना।
जिस ओर अग्रसर है विश्व, कुछ नहीं बस न्यूनता है।

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