तुम चाहो न चाहो होनी हो, तो वो हो ही जाती है।
ये कड़ियां हैं यहां, मुकद्दर जो यहां कही जाती है।
जहां में सारे कौन इनके, असर से है, यूं बच पाया।
कुछ और होता है देना, कुछ और ही ये दे जाती है।
हंसी की आस में सभी,खुद का किया है कर जाते।
पोशीदा से तरीके हैं इनके, अपने वक्त पे रुलाती है।
छिन सभी कुछ है जाता और सब होते हैं खिलाफ।
कभी फिर हाथ थाम ये तुम्हे,मालामाल कर जाती है।
लाख कोशिशें, एक महबूब, न मिला पाती हैं कभी।
कभी फिर बस अंजाने ही, मोहब्बत यहां टकराती है।
पास होता जो तुम्हारे अक्सर वो नजरंदाज होता है।
किसी के दूर जाने से ही, उसकी याद क्यों आती है।
निराले हैं खेल सारे जाने कौन है किस से खेल रहा।
यही सब, कभी जिंदगी तो किस्मत यहां कहलाती है।
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