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नसीहतों से कह दो अभी मैं मग़रूर हूँ
हालांकि सच ये है कि बहुत मजबूर हूँ
दिल का शहर, मरहम समझता है हमें
चोट खाये आशिक़ों में, ऐसे मशहूर हूँ
अब तो मेरे घर का पता ही मयखाना है
और दुनिया समझती है मैं नशे में चूर हूँ-
तुम दीपक हम बाती बन जाते हैं
हम दो राही आपस में मिलकर
हम राही बन जाते हैं।-
अपने अपने ज़ख्मों के लिए
और बन जाते हैं मिर्च नमक
एक दूसरे के ज़ख्मों के लिए-
ज़माने से मिले इन ज़ख़्मो पर कामयाबी का मरहम लगाएँगे
अपनी नाकामयाबी की लङाई को हम मेहनत कर हराएँगे-
कुछ तुम कुछ हम बन जाते है
सूली चढ़ते अरमान बहुत
कंधे से कंधा मिलाते है
दीवार नही कोई दिल मे
'घर' ऐसा कोई बनाते है
भारी जो जिम्मेदारी पर
हसरत वो 'दीप' जलाते है
मुझमें भी जो तुझमें भी है
इस 'मैं' को बीच हटाते है
सांसो की माला में मोती
सरगम की धुन बन जाते है-
और
एक दूसरे के ज़ख्म भर जाते हैं..
आओ ना
इस प्यार भरी दुनिया में
एक दूसरे के रंग में रंग जाते हैं-
भूल जाती हो खाने में हल्दी अक्सर
ना जाने ज़ख्मों पे मरहम कैसे करोगी।-