मन्नत के धागे, नजूमी के कौल से भी, नहीं हैं सब्र,
ख़्वाहिश करते ही टूटता तारा मिले, तो बात बने!
जिंदगी के लिए जीने की सिर्फ शिद्दत काफ़ी नहीं,
जीने की कोई खूबसूरत वजह मिले तो बात बनें!
यूँ तो मिल जाते हैं राहों में हमनवां, हमदम, अक्सर,
कोई मिले जिंदगी का हमसफ़र, तब तो बात बनें!
मिलते मुसाफ़िर अलग राहों के अक्सर ज़िन्दगी में,
कोई अपनी राह से मेरी राह पे आये तो बात बनें!
दोस्त अहबाब बहुत हैं, जो याद आते हैं खुशियों में,
कोई मिले ऐसा, जो ग़म में याद आये तो बात बनें!
पढ़ते तो सब है मेरे अल्फ़ाज़-ए-तहरीर को बेशक,
कोई तस्दीक तो करे मेरे बयान को, तो बात बनें!
यूँ तो आंसू पोंछने को मेरा अपना दामन तो है "राज" _राज सोनी
कोई अपने आँचल में ले ले अश्कों को, तो बात बनें!-
कुछ थी तुम किस्मत में, कुछ थी तुम लकीरों में,
जब से तुम मिली हो मुझे, तब मैं मुकम्मल हुआ!
थोड़ी ख़्वाहिश मुझे थी, थोड़ी तलाश तुझे भी थी,
जिस मोड़ पर हम मिले, वो हमारा ठिकाना हुआ!
कंही कुछ तुमने भी कहा, कंही कुछ मेने भी सुना,
मिले जब अल्फ़ाज़ हमारे, प्यार का किस्सा हुआ!
कुछ मन्नत तू ने की, कुछ दर दर इबादत मैने भी की,
जब हुई दुआ कुबूल, फिर ये हसीन अफसाना हुआ!
कुछ ख़्वाब तू ने देखे, कुछ वैसी हसरतें मेरी भी थी,
कुदरत ने जब हामी भरी, तब हमारा मिलन हुआ!
कुछ मिले है इस जिंदगी में, बाकी मिलेंगे फिर कभी,
जब बनोगी चाँद आसमाँ का, तब मैं सितारा हुआ!-
खोल दिए सारे मन्नतों के धागे जो दिल ने उसके मोह मे बडे जतन से बांधा था...
था तो अज़ाब दोनो ही मगर जो कभी मेरा था ही नही उसे चाहने से उसे छोडना आसान ज्यादा था।-
मुझसे हिसाब मुहब्बत का जो मांगोगे मेरे...
धागे मन्नतों के देंगे गवाही मेरी ...
बांध आई हूँ पेडों पे मैं जो नाम के तेरे..-
पावन पर्वों पर
विशाल वट-वृक्ष
शुभ शगुन से रंगे
पचरंगें मन्नतों के
सूत्र बंधन....
मानवीय मान्यता
"लाभ" फल फलित
न होता:::::::::::
जब तक
मन की कषाय रूपी
सूत्र और ग्रंथी को
साक्ष्य रूप से खोलकर
न अर्पित करते,,,
अश्रु जल के साथ
"भला" और गुणित होता!!
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कैसा इश्क़ है ये तेरा,
छोड़ा भी नहीं जाता!!
धागा हो जैसे मन्नत का,
तोड़ा भी नहीं जाता!!
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प्रेम कविता
कागज़ पर उतारते हुए
अचानक लाल रंग की स्याही
फ़ैल गयी...
मैंने शमी के पौधे पर
तुम्हारे नाम से
मन्नत का काला धागा बाँध दिया
कि सब कुछ ठीक रहे
मेरी आस्था का ईश्वर तुम्हारी रक्षा करे.
सिंदूर मात्र विवाहिताओं का ही फैलकर
अपशगुन तो नहीं करता!
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