दो वक्त की रोटी
गरीबों के पेट में डाल देते
दीया क्यों जलाते हो साहब
गरीबों के चूल्हा जला देते-
इज्जत, मान-मर्यादा, तहजीब, प्रतिष्ठा
ये सब "ढोंग" है "भरे पेट का",
"भूखा पेट" ये सब क्या जाने वो तो
अपना पूरा जीवन "पेट" की
"आग बुझाने" में लगा देता है..!!
:--स्तुति-
भूख थी उसे बस,
स्वाद का पता नहीं,
पेट भरने से मतलब था,
बाकी और कुछ पता नहीं।-
खाने की असली कीमत ...
हम और आप क्या बतायेंगे ..
इसकी असली कीमत तो ...
केवल वो भूखा ही बता सकता हैं.-
Collab 2
शायद उनकी बेटे हैं मजदूर
रहता होगा मा से दूर बहुत दूर
लकडाउन में आटक गया
घर वापस नहीं आ पाया।
ऐ भी हो सकता की वो पयदल चलके
आते होंगे हजारों माइलस्टोन पार करके।
मातृदिवस में हैं ना कोई चारा
मां बेटे के पास जो हैं गरीब बेचारा।-
दोस्तो
दुनिया पैसों वालों की
"जी हुजूरी" करती है,
वरना रिश्तेदार तो
भिखारियों के भी होते हैं!!!-
मुखौटा था महज़ मैं रूह से फरेबी नहीं था
खाली जेब भूखा पेट मेरा अपना शौक नहीं था
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हे ईश्वर..!!!!
तूने ये भूखा पेट क्यूँ बनाया...???
और जो बनाया था,
तो इसे भरने का बटन क्यूँ नहीं लगाया....!!
#अक्स-
इश्वर को दोष देना गलत हैं,
जब दाँत नही दिए थे तब दूध दिया
अब दाँत दिए है तो अन्न भी देगा।।
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