ऐसी भी क्या बेरुखी है जो बात नहीं करते हो
आँखें दो चार करके इज़हार नहीं करते हो-
_शिखस्त_
अल्बत्ता शिखस्त भी
जरूरी हो जाती है
अलम-ए-बेरुखी को
मिटाने की खातिर...
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मेरी खामोशियां
गुस्सा बहुत भरा पड़ा है दिमाग में , 😡
इश्क जो बेहिसाब करता हूं उससे । ♥️-
"तेरी बेरुखी से
अब ये दिल दु:खता नहीं?
मुझें आदत सी है
प्यार वाला कोई मिलता नहीं ।"
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.....तेरी यादें😔😔
मुझे अब बहुत ज्यादा याद आने लगे हैं....वो
कोई बहाना बना ऐ ज़िन्दगी....उनसे मिलने का...-
कैसे कहे हमारी राते तुझ बीन किस कदर गुजरती हैं
बरखा की हर बूँदे हमे दिन रात बेचैन कर देती हैं-
जहां! में हमने मोहब्बत़, दो तरह, की देखी हैं......,
कहीं! रहकर भी सब कुछ, बेरुखी देखी हैं......तो !
कहीं, कुछ न रहकर भी, रुह से रुह की, दिल्लगी, देखी हैं.....।।-
❤️अच्छा होता गर सूख जाती जू-ए-मोहब्बत मुझमें
कि बेरुखी पे तिरी,ये नमी अब खलती बहुत है❤️
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दर्द और गम मिलतें रहे,सहते रहे, कि
बेबसी पे खुद की, रोने का हक भी न था, अब तो-
तुम जहां छोड़ गए थे
अब तक वहीं रह तकती मैं
तुम से दूर नहीं
तुम्हारे पास ही कहीं मैं।
मेरी हर बात तुम से शुरू
तुम पर ही खत्म होती है
तुम पास मेरे जानूं मैं
फिर ये आंख क्यों बेबात रोती है।
ये दिल भी कुछ समझता
तो नहीं अब हैं
किससे कहूं हाले दिल
ये दिल बहलता तो नहीं अब हैं।
बातों में ये जो उदासी है
कहीं गुम मेरी हंसी भी है
जो तुम पास नहीं मेरे
बेबस सारे अरमान मेरे।-