क्या हुआ जब बाबा नागार्जुन, कवि केदारनाथ अग्रवाल के गृह नगर बाँदा के कवि सम्मेलन में पहली बार गए?
केदारनाथ अग्रवाल ने जब बाबा के आगमन को 'अहोभाग्य' कहा, तो बाबा ने खुद को 'बड़भागी' क्यों कहा?
(अनुशीर्षक में पढ़ें)
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देस के हित के कारने, महँगी हैगी प्याज़।
रोटी के लाले परे, बैठ खुजाओ खाज़।।
(महंगाई = देशहित में कड़े फैसले)-
काय परी अलसानी, ओ बिन्ना
हो गई भोर सुहानी, ओ बिन्ना
मूंड़ पे डारे चदरा- पटका
कसर-मसर तोड़त हो पलका
उठ बैठो महरानी, ओ बिन्ना
हो गई भोर सुहानी, ओ बिन्ना
उठ के कारज रोज के कर ल्यौ
भगवन की छवि ध्यान में धर ल्यौ
भूल के बात पुरानी, ओ बिन्ना
हो गई भोर सुहानी, ओ बिन्ना
भारत देस हमारो प्यारो
योगासन है सबसे न्यारो
दुनिया जाकी दिवानी, ओ बिन्ना
हो गई भोर सुहानी, ओ बिन्ना
काया के सब रोग मिटा ल्यौ
योग करन की लगन लगा ल्यौ
छोड़ो अब मनमानी, ओ बिन्ना
हो गई भोर सुहानी, ओ बिन्ना-
नगरी नवाबों वाली लखनऊ हमारी राजधानी है
मुरादाबाद के पीतल का नहीं विश्व में कोई सानी है
राजनीति के झंडे हर गाड़ी पे उत्तर प्रदेश की निशानी है-
ऐसी माटी न है भारत के खण्ड खण्ड में
जन्म दियो विधाता हर बार बुंदेलखंड में-
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दशहरे को सोन व नीलकंठ दिखाए जाते हैं।
कहते हैं इनके दर्शन से दिन शुभ हो जाते हैं।।
हर घर के चबूतरे पर पान की चौकी लगाते हैं।
दशहरे की राम राम कह सबको पान खिलाते हैं।।
सांझ को बुराई रूपी रावण जलाते हैं।
द्वेष भुला प्रेम से सबको गले लगाते हैं।।
छोटो व मित्रों को स्नेह जताते हैं।
बड़ो के चरणों में शीश झुकाते हैं।।
श्री रामराजा का विजय पताका फहराते हैं।
ऐसे ही मिलजुलकर विजयदशमी मनाते हैं।।-
मुहब्बत में कभी कोई मेरे भी दौर से गुजरे,
अज़ीयत ही अज़ीयत है मुसाफ़िर ग़ौर से गुजरे।
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ग़ज़ल
सुनो मैं मकां से निकलने लगा हूँ,
हवा से मुलाकात करने लगा हूँ।
नज़र को मिलाते थे जो शख़्स मुझसे,
मग़र अब उन्ही पे बिगड़ने लगा हूँ।
रहे ग़म भला कब तलक तुम बताओ,
बजह बे बजह क्यों तड़पने लगा हूँ।
गली में गुजरते दिखा ही नहीं था,
न देखा जिसे उससे जलने लगा हूँ।
उजाड़ा मुझे हर कदम ऐ मुहब्बत,
उगा कर गुलिस्तां पनपने लगा हूँ।-