चंद शेर
मंजर ऐसा, मेरी ऑंखें तर थीं
देखा तो सबकी ऑंखें मुझ पर थीं
कोई ना समझा मेरी गजलों को
गजलें वो जो हर बंदे के सर थीं।।
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मैं हर रोज खुद की नज़र उतारता हुँ
मुझे हर रोज खुद की नज़र लग जाती है।
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इन शोर भरी गलियों में एक अजीब ख़ामोशी थी,
मैं भूल गया था कि मेरा दिल भी यहाँ बैठा है।।-
मैं हर रोज ख़ुद की नजर उतारता हूँ
मुझे हर रोज खुद की नजर लग जाती है।।-
अगले वर्ष तक और गम भरेंगे इन आँखों में
क्या करें इस बारिश में जी भर के रो न पाया
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मेरे कहने पे तुम राजी हो बैठे
मेरी बाहों के तुम माझी हो बैठे
हम ही शौहर, हम ही बेगम , हम ही सब
हम ही इस शादी के काज़ी हो बैठे-
मंटो साहब की सबसे ख़ूबसूरत बात
"सवाल ये है कि जो चीज जैसी है, उसे वैसी ही पेश क्यों ना किया जाए"-
समझौता हाँ चल करते हैं
पर दिल की दूरी रखते हैं।
कौन मुनाफ़िक़ था दोनो में
बात खरी खोटी कहते हैं।
हम झूठा कितना भी हस लें
पर तन्हाई में रोते हैं।
चाय बहस ,चाय बहस छोड़ो
चाय तसल्ली से पीते हैं।
कुछ तुम कह दो, कुछ हम सुन लें
गलती मुझ पे ही रखते हैं।
दिल भारी क्यों करना यारा
बात रफा और दफा करते हैं।-