तुम आ गईं (भाग-2)
• भंडारा (Bhandara)
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तन्हा हमको छोड़ दिया
और बोल गया आसानी से
इश्क तो मैं भी करता हूँ
पर डरता हूँ बदनामी से
दिल से तुमको चाहा था
और दिल से तुमको चाहूँगा
दिल से दिल का नाता हो बस
क्या होता है शादी से-
पल भर भी वो दूर नहीं होता मुझसे
मूरत दिल में बसती है मुरलीधर की
राधा रानी बोल रहीं हैं सखियों से
ये मुरली ही काफ़ी है मुरलीधर की-
तुमको अपनी मम्मी से मिलवाना है
और फिर रोटी गोल नहीं बनती तुमसे
छोटी छोटी बातों पर इतना गुस्सा
जाओ हमको बात नहीं करनी तुमसे
'अज्ञानी' ने तुमको ही तो चाहा बस
कह देता हूँ प्यार नहीं पगली तुमसे
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हम खिल उठे थे रात में इक ख़्वाब देखकर
मारा नहीं गया हमें मिलवा दिया गया-
पहले से कुछ सँबर गये हैं क्या
वो हमें अब बिसर गये हैं क्या?
अब कोई इश्क़ क्यों नहीं करता?
क़ैस दुनिया से डर गये हैं क्या?
जितने इल्ज़ाम थे मुहब्बत के
हाय! मेरे ही सर गये हैं क्या?
अब मुझे नींद क्यों नहीं आती?
मेरे सपने बिखर गये हैं क्या?
अब उन्हें लौट के नहीं आना?
छोड़के इस क़दर गये हैं क्या?
साथ मेरा कोई नहीं देता ,
मेरे सब दोस्त मर गये हैं क्या?
दो ही बच्चे हैं उसके 'अज्ञानी'
वो भी अब आप पर गये हैं क्या-
कोई न मिला देख लिया जग खंगाल के
जो दे सके जवाब मेरे हर सवाल के
उस आँख में आँसू हैं और कुछ भी न बचा
हम ले गये जिस आँख से कजरा निकाल के-
वो चाहे कुछ भी न करते हों लेकिन
माँ बाबा का साया काफी होता है
कुछ अशआर तो यूँ ही लिक्खे जाते हैं
कुछ ग़ज़लों का मतला काफी होता है-