----------------------------------- तुझे देखा नहीं कितने दिनों से। सुकूं पाया नहीं कितने दिनों से। न पलकों से लगीं पलकें ज़रा भी, दिखा सपना नहीं कितने दिनों से। शज़र तन्हा, परिन्दा भी नहीं है, समा बदला नहीं कितने दिनों से। न पूछो दोस्तो अब हाल मेरा, पता अपना नहीं कितने दिनों से। नदी सूखी, हवा भी नम नहीं है, हुई "वर्षा" नहीं कितने दिनों से।
देखा था मिल के सपना उम्मीद है कि अब के हो जायेगा वो पूरा ख़ुशियां खिलेंगी बन कर इक फूल की तरह अब ख़ुशबू बिखेर कर अब चाहत सुकून देगी इक नज़्म मेरे- तेरे होठों पे फिर सजेगी हम साथ-साथ होंगे, दूरी नहीं रहेगी