अब तो सफेदी की चमक आने लगी है मेरे बालों से
साफ दिखने लगी है थकन मेरे माथे की खालो से
बूढ़ा बदन देख मुझसे किनारा कर रहे हो जवान बेटों
कभी तुम्हारी ही तरह आती थी चमक मेरे गालो से
-
उलझी हुई दो बालों की लट, उन्हें बहुत परेशान करती है,
जब सँवारी मैंने वो लट, उलझने तमाम मेरी सुलझ गई..!!-
वो मेरे पास आके सटकर बैठ गई,
मैंने उसकी नरम हथेली अपने हाथों में ले ली,
उसके बालों से मोगरे की जो खूशबू आ रही थी
उस धीमी खुशबू को मैंने अपने भीतर समेट लिया...
वो अपनी बातों से मेरे दिल के कागज पर नज़्म लिखे जा रही थी....
मैं सुने जा रहा था,
खोए जा रहा था कोई मधुर संगीत हो जैसे...!!
और बाहर बारिश उसकी इसी नज़्म को सुनके बरस रही थी.....♥️-
बालों में लगे फूल भी तुम्हें देख कर इतरा जाते हैं ....
पर एक तुम हो जो समझते नहीं,
कि हम तुम्हें देखकर क्यों मुस्कुरा जाते हैं.....-
जिस दिन वो अपने बाल खोलकर आती हैं,
ना जाने कितने दिलों को कैद करके ले जाती हैं.
नागिन जैसे तुम्हारी जुल्फे जब लहराती है,
ना जाने कितने दिलों पर कहर बरसाती है.-
ऐसे उलझा दिल हमारा जैसे तेरी जुल्फों के सुमन
होठ मुस्कुराये या न मुस्कुराये हर सूँ मुस्कुराता है मेरा मन!!-
अबतक गई नहीं है ख़ुशबू मेरे हाथों की,
जब से सँवारी है लट तेरे बालों को की..!!-
यूँ खुले बाल तो अच्छे हैं
पर मेरा कहा मानो
जूड़ा बाँध लिया करो,
तुम्हारे खुले बाल
मुझे अलंकृत करता तो है
पर हम कपटी पुरुष
वासना के चंगुल में
तुम्हारे खुले बाल को
सम्प्रेषित करते हैं
तुम मानो या न मानो
इन बालों के सोभनियता को
हम छलते हैं,
तृष्णा के उद्धभाव से
तुम्हारे अंग-अंग को
बहशी बन काटते हैं।
क्षुब्ध नयनों से तारते हैं!
तुम्हें भोग की बस्तु मान
टूट पड़ते हैं!
फिर तुम हारकर जूड़ा बाँधते हो
मैं चाहता हूँ ये खुले बाल
खुले न रहे!
मैं बहशी न बन पाऊँ
तुम लाज को
अपना आभूषण
बना लो...
तुम जूड़ा बाँध लो-
ऐ हवा तुझे क्या मालूम कितनी देर सजी थी वो,
तूने तो पल भर में आकर बिखेर दिये बाल उनके..!!-
वो अपनी जुल्फ़े संवारती रही!
वो अपनी ज़ुल्फो को इस तरह से सवांरती
रहती है, और उसके इस अंदाज़ को कोई
निहारता रहता है, उफ़्फ़ ये जुल्फें उसके
चेहरे की चार चाँद लगा देते है।-