SURAJ आफताबी   (The Burning Star🌟)
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Joined 9 June 2018


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3 MAR 2022 AT 20:27

जीवन के पथ पर
सांसों के रथ पर
प्रभुत्व तुम्हारा हो रहा है
मुझे स्वयं की खोज में निकलना होगा
स्वत्त्व मेरा कहीं खो रहा है !

क्षण भर के हैं ये उन्माद
जिनका आलिंगन मुझसे हो रहा है
मैं बुझ रहा हूं धीरे-धीरे
कुछ तो है जो मुझमें अब सो रहा है
मुझे स्वयं की खोज में निकलना होगा
स्वत्त्व मेरा कहीं खो रहा है !

इक सुलगता सा चिंगार आंखों में गिर गया
फिर धीरे-धीरे मैं दहकती चिंगारियों से घिर गया
तुम जबसे चले गये हो सूखी पलकों को छूकर
तब से सब हंस रहे मगर मन रो रहा है
मुझे स्वयं की खोज में निकलना होगा
स्वत्त्व मेरा कहीं खो रहा है !

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27 FEB 2022 AT 23:26

ये लज्ज़त भरा शाम का किनारा
गीला मंजर और मुस्कुराता मुख तुम्हारा

तुम्हारी निस्बत में दिन पलकें झुका रहा है
ओट में अपनी मुझे हमेशा को सुला रहा है

मगर सोने से पहले इक वादा ले लूं
आखिरी दफा क्या हाथ तुम्हारा छू लूं ?

फिर जाने किस सदी के सवेरे मुलाकात हो अपनी
क्या पता दोनों सामने बैठें रहे फिर भी बात न हो अपनी

फिर क्यूं न तुम्हारी इक मुस्कुराहट अपने साथ ले जाऊं
काल के जिस भी हिस्से में रहूं वहीं उसी संग ईद-दिवाली मनाऊ

मुझे पता है तुम्हारे संग जैसा जीवन मिलेगा न मुझे दोबारा
ये लज्ज़त भरा शाम का किनारा
छूटता मेरे हाथ से हाथ तुम्हारा
गीला ये मंज़र और मुस्कुराता मुख तुम्हारा !

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21 FEB 2022 AT 20:49

जाने कितनी रोज़ दीवारों से टकरा कर दम तोड़ देती है
और जाने कितनी 'चीखें' चीख-चीख कर मौन हो जाती है
रूह कांप जाती है ये सोचकर मेरी
जाने कितने लाज भरे आंचल जवानी में उजाड़ दिये जाते हैं
और रोज जाने कितनी बच्चियां बचपन में जवान हो जाती है !

मुझे लगता है भगवान तो उस हादसे के वक्त ही मर जाता होगा
लेकिन जब इक लड़की निकलती है दहलीज़ से बाहर
अपने हाथों में अपनी बिखरी आबरू के टुकड़े लेकर
आदमी जिंदा तो रहता है मगर उसी क्षण आदमियत की भी मौत हो जाती है— % &

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19 FEB 2022 AT 20:25

पैदल चल रही भावनाएं मेरी
तुम तक पहुंचते देर हो जायेगी
तुम ठहरना , इंतजार करना
वरन् इक संभावित प्रेम कहानी मौन हो जायेगी !

जिन तपती आंखों में पकाया है स्वप्न तेरा
वहां पावस ऋतु का डेरा रहता है
मन तो तेरे जाने से पहले ही सहमा-सहमा रहता था
अब तो वहां दर्दों का भी फेरा रहता है

मेरे दृगजल का बोझ लेकर चल रही भावनाएं मेरी
तुम तक पहुंचते शायद देर हो जायेगी
तुम उस फटे पन्ने को याद करना और विचार करना
नहीं तो तुमको लिखी ये डायरियां मेरे लिये 'कौन' हो जायेगी
तुम ठहरना , इंतजार करना
वरन् इक संभावित प्रेम कहानी मौन हो जायेगी !— % &

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17 FEB 2022 AT 21:00

तनिक मात्र भी नहीं अंतर
पुष्प सज्जित पूजा के थाल में
और तेरे बिंदी शोभित भाल में

जैसे वो प्रज्वलित दीप
वैसा ये अरूणिम वदन है
गीले फूलों की पंखुड़ियों वाली बूंदें
तेरी बरौनी पर भी तो मगन है !

ये थाल अर्पित किसी अलौकिक शांति को
तुम्हारा मुख अर्चित मेरी लौकिक शांति को
ज्यों ये कुमकुम इक तिलक प्रयोजन को है
ये बिंदिया तुम्हारी भी तो उसी आयोजन को है

हर सूक्ष्मता से खोज कर देख लिया , मगर
नहीं श्लेष मात्र भी अंतर
इस पुष्प सज्जित पूजा के थाल में
और तेरे बिंदी शोभित भाल में !— % &

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31 JAN 2022 AT 21:43

दिल रूठा है मुझसे कल परसो से
कहता है........
तेरे होते कैसे बांधी पायल उसने झुक के ?— % &

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29 JAN 2022 AT 21:24

मैं, मेरी तन्हाई

और सामने अधूरी रूबाई

फिर धीरे-धीरे और ढ़ली निशा

फिर अनमने मन से शम्मा बुझाई

फिर भी सोने की तमाम कोशिशें रही नाकाम

और प्यासे लब जब सुलग उठे

उठा मैं, और मेरे हाथों ने उठाई जाम !— % &

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28 JAN 2022 AT 16:54

वो पूछे...
प्रेम मेरा कहां अवस्थित ?

(शेष प्रेम अनुशीर्षक में.....)— % &

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10 JAN 2022 AT 17:20

जिनकी स्मृतियों में शेष रह गये
मेरे संग के दो-चार पल
वो वाक़िफ होंगे इस विचार से कि
मेरे कागज़ खेत मेरे और कलम है हल !

वो भावनाओं के बीज बोता है
मैं खाद डालता हूं भाषा, शिल्प व अलंकार की
और जब सींचता हूं स्याह स्याही से
तब जाके स्फुटित होती है काव्य की छोटी सी कोंपल
बिल्कुल उसके स्पर्श सी एकदम मृदुल कोमल !!

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7 JAN 2022 AT 20:22

मधुमय ज्वाला लिखूं या अमानिशा में उदित चांद
"कवि" तुम्हारा खड़ा द्वंद्व में, हाथ में लेखनी थाम
विषय तेरे सौंदर्य के बड़े दुर्गम , बड़े कठिन ठहरे
दिन-रैन पढ़ते रहते नैन, न करते इक पल भी विश्राम !

लौह सा दृढ़ था अन्तस तुम्हारे दीदार से पहले
निगाहें तुम पर पड़ते ही, हुआ चुटकियों में भाप है
ये अपनी कौनसी मंदाकिनी में बहाये ले जा रहे हो मुझे
मैं कण-कण सा बिखर रहा या मुझमें कण-कण की पदचाप है !

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