अंग्रेज़ों के मन में सोने का ऐसा लालच भर गया, जो कॉर्टेस और पिज़ारो के काल के स्पेनवासियों के बाद कभी देखने को नहीं मिला था। अब ख़ासतौर पर बंगाल को तब तक चैन नहीं मिलने वाला था जब तक उसके खून की एक एक बूंद न निचोड़ ली जाए।
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हाय हुआ पुनः लाल बंगाल का हाल
एक और बंग-प्रदेश बनाने-की-चाल
माँ माटी मानुष का नारा सिंगूर प्यारा
याद है मुझे धरना-प्रदर्शन खेल सारा
निज सत्ता सुख में राष्ट्र समा रहा गर्त
उस बार गुजरात इस बार बंगाल मर्त
वो-भी नशे में चूर था ये-भी है मगरुर
और छिन्न-भिन्न हो रहा देश का गुरुर
काल-दर-काल राजनितिज्ञों का हाल
भिंडरावाला बना-कर इंदू को मलाल
भीम वाले देखना कम नहीं होंगे यहाँ
मौजूदा सरकार ही बढ़ावा देती जहाँ
कहीं हाथियों का उद्यान संवरते रहते
कोई सैफई छमाछम चमाचम सजते
कहीं-जंगल-में-लालटेन-तीर-बंगला
और राष्ट्र हुआ जा रहा नित्य-कंगला-
देख मोदी क्या हुआ भारत का ये हाल
क्या करेगा जीत कर अब तो तू बंगाल
जाने कैसा जादू है तुम लोगों की थैली में
जाये ना करोना भी तुम लोगों की रैली में
एक ओर तो चल रहा कुम्भ का महास्नान
दूजी ओर चिताओं से अटा पड़ा श्मशान
वैक्सीन दी दुनिया को हमने इसका हमको गर्व
मना वैक्सीन के बिना, वैक्सीन का महापर्व
दीदी के पीछे पड़ा, देश का चौकीदार
ताली, थाली या गाली, सबका तू हकदार
भूलेगा न भारत कभी, ये करोना काल
जीत हो या हार हो, सब तेरे ही भाल-
क्यों हुआ देश का हाल बुरा है
लगता ये उनको सवाल बुरा है
लोग बुरे हैं या बुरी है व्यवस्था
या आया ये काल बुरा है
बुरी है दिल्ली, बुरी मुंबई है
या पूरा बंगाल बुरा है
षड्यंत्र ये जाने किसका रचाया
फैला है जो जाल बुरा है
सोचा पिछला साल बुरा था
ज्यादा मगर ये साल बुरा है-
अवार्ड वापसी टुकड़े गैंग
रस्ता बंद, सड़क बंद मोमबत्ती स्टैंड
कहां गए सब पालनहार
देश प्रेम पे छिड़कते जो अद्भुत ज्ञान..
चिड़ाया चुप अंधेरा घुप
हर लब खामोश हर नजर धृतराष्ट्र...
तुम भी यहीं हम भी यहीं
देख लेंगे एक एक को
सीना तान जो कहते थे...
खून ही खून भूमि भी लाल
कपड़े फाड़ सियासत बेहाल
बंग भंग का खेला ये
जम कर खेला जाएगा...
कर दिखलाया बोला था जो
सोचा न था सच था वो
विकास तरक्की दूर की बातें
वोट तो पहले हिंदू मुस्लिम पर ही हो ले...
क्या बुद्धिजीवी भी दे पछताएं
अपना अपना वोट...?
क्योंकि जिंदा रहोगे तब तो देखोगे
नए बंग का हरा वेश...-
क्या क्या कहूँ अम्फन की दास्ताँ डूब गया बंगाल
डगमग डगमग डोली प्रकृति जीना हुआ मुहाल
अतिवृष्टि दृष्टि से देखी तीव्रतम वायु वेग
पुर्जा पुर्जा उड़ गया रुई सा ले गया जैसे नेग
कतरा-कतरा कर रहा चित्कार अपार कर हार
गोशा गोशा गुलशन गल गया नुकसान रही निहार
पेड़-पौधे सब डालियाँ टूट-टूट छितराई
अब तक देखी थी नहीं गति से इतनी आई
विद्युत खंभे उखड़ उखड़कर उलट-पलट विध्वंस
विद्युत तार कूद फलांगकर रह गया मात्र अंश
ट्रक बस उलट-पलटकर सड़क मार्ग पर लगा जाम
बढ़ गया आपदा प्रबंधन का अनंत प्रयंत काम
सौदामिनी भी चीख-चीखकर उगली मुख से आग
आग सीधे नीचे जल गया पेड़-पौधों का भाग-
👉बाल कविता👈
ज़ोर शोर के बरसा पानी
डर ने याद दिलाई नानी।
तेज़ धार से भीगी बिल्ली।
दबा पूंछ पहुंचेगी दिल्ली।।
😿निकल गई ना हेकड़ी😿-
वो बंगालन थी शायद,
उसका बात करने का तरीका अच्छा था।
दिल को भा गई मेरे,
उसके मुलाकात का सलीका अच्छा था।-
है चुनाव का शंखनाद उद्गोषित,
महता शासन की हर नेता मन पोषित।।
सभी निर्वाचको को लुबाने की करते कोशिश,
चाहे बेइमान हो, हो या शोषिश।।
अभिलाषाओ को पूर्ण करने के देते वादे,
अंधेरों में तोड़ते सारे कायदे।
साम, दाम, दंड, भेद लगाते जीत हो मेरी
कलयुग में रहिमन सब धान बाईस पसेरी ।।-