आज बात संविधान के आठवीं अनुसूची की
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"अनुभव बहुत ज़रुरी है", जीतने के लिए, आगे बढ़ने के लिए।
ऊँचे पहाड़ों पर चढ़ने की आदत ज़रुरी हैं ऊपर उठने के लिए।
"बैठे-बैठे" जब सब कुछ मिल जाता हैं तब क़दर नहीं होती है।
"बार-बार हारना" बहुत ज़रुरी होता हैं एक बार जीतने के लिए।
लोग कितनी भी सहानभूति और सम्मान करे कोई लाभ नहीं।
आत्मविश्वास बेहद ज़रुरी होता हैं बुरे हालत से लड़ने के लिए।
कोई कुछ भी कहे कहने दो, उस ताने को अपनी शक्ति बनाओ।
बुरीबातें बुरेहालात बहुत ज़रुरी होते हैं अच्छावक्त़ लाने केलिए।
तुमबहुत ज़रुरीहो मेरेहोने केलिए, मेरीख़ुशी, मेरीज़िंदगी केलिए।
कि सुनो "अभि" ग़म बहुत ही ज़्यादा ज़रुरी है "ख़ुशी के लिए"।
और मेहनत बहुत ही ज़रुरी है सफ़लता और ज़िंदादिली के लिए।-
पता नहीं
हम कौन से भगवान पर विश्वास करते हैं,
लोभ में आकर,
हम मंदिर भी बदल डालते हैं!
জানিনা
কোন ভগবান কে বিশ্বাস করি,
লোভে পরে আমি,
মন্দির ও বদলে ফেলি!-
गुजराती जेठालाल
कितना ही चालाक बने।
अक्सर
बंगालन बबीता के
झांसे में आ ही जाता है।
😊मोटा भाई सावधान😊-
झोलाछाप बंगाली डॉक्टर गांव गांव बैठे हुए हैं। प्रशासन में इतनी हिम्मत नहीं कि उन पर रोक लगा सकें क्योंकि ग्रामीण क्षेत्रों की सारी स्वास्थ व्यवस्था इन्ही के भरोसे है।
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नव वर्ष
बंगाली नव वर्ष
और मैथिल नव वर्ष की
ढ़ेरों शुभकामनाएं और बधाइयां।-
चंद्राचूर मुखर्जी ने कप का प्याला माँगा ही था _ उसकी पत्नी स्वरलता का आवाज कानो मे गूँज उठा, 'देखो जरा अपनी बेटी को, कहीं ये भी नादानी मे वो गलती ना दोहरा बैठे , फिर जिंदगी भर कोसने के अलावा कुछ नहीं बचेगा'. विवाह अपने बिरादरी मे तो बेहतर है, हम नहीं रहे,तो परिवार वाले कम से कम सम्भालेंगे. मुखर्जी जी थोड़े परेशान तो हुए, पर परेशानी छुपाते हुए, तपाक से बोले _अब सरकारी नौकरी तो ले लेने दो उसे. अजी मिष्टी की चक्कर मे यही हुआ था, याद नहीं, कैसे उसने बिन बताये एक मुसलमान से शादी कर ली. भूगत रहे ना अब तक. अब ये भी वही रास्ते पे है. ना जाने मुझसे क्या दोष हुआ..!
अरे हम समझायेंगे सोमी को, कि कैसे वो मुसलमान लड़का, उसे फसा रहा. स्वरलता बोल उठी, कुछ कीजिए, हम अपनी दोनों बेटी को खोना नहीं चाहते. एक से गलती हो गई, कोई तो हो कुल मे, जो वंश जिंदा रखे. माँ दुर्गा से ही अब उम्मीद है. एक परिवार मे दोनो बेटियाँ का मुसलमान घर मे शादी होना, एक पिता को हरगिज मंजूर नहीं है. पर उनकी पढ़ी लिखी बेटियाँ, प्यार पे धर्म नहीं, सुकूं देख रही थी. हमेशा से खुले ख्याल मे जीने वाली, को धर्म का मसला नहीं था,ना ही समाज का,मसला था तो अपने माँ बाप का. जो उसे कदापि नहीं स्वीकारते. उनलोगों के लिए, उनका धर्म मे ही सम्मान है. बहोत अजीब विडंबना थी, जो उस परिवार को पार करनी थी. ये वही थी, जो सदियों से लुढ़क कर आ रही थी.-
सुनों... प्यार से मिल जाओ तो अच्छा है...,
वरना,
"मनचाही लड़की से शादी करवानें" वाले एक बँगाली बाबा का नम्बर भी है मेरे पास...।-
अगर तुमने एक बार कहा था, और प्यार दो, तो मैं कहूंगा कि मैं यहां हूं, जितना चाहो ले लो। आप कहते हैं कि मुझे एक चुंबन एक बार देते हैं, मैं गुस्से में कह सकते हैं कि, ओह! गाल तुम्हारा है, जितना आप चाहते हैं के रूप में खाते हैं। यदि आप एक बार मेरा हाथ पकड़ते हैं और कहते हैं, तो मैं कहूंगा कि मैं कहां रहूंगा, आप मेरे दिमाग में क्यों कहते हैं, मैं कहूंगा, यह सब बेवकूफी बाद में करें। हा हा हा, एक बार मैंने कहा, आप केवल मेरे हैं, मैं कहूंगा कि इसे इस तरह से करो, मेरे जीवन में लड़ो।
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